बीते एक महीने तक चले चुनाव के बाद अब 5 राज्यों के अंतिम नतीजे आ गए हैं। पांचवें राज्य मिजोरम में आज हुई वोटों की गिनती में जोराम पीपुल्स मूवमेंट यानी जेडपीएम की सरकार बनने जा रही है। मिजोरम में जेडपीएम को 40 में से 27, मिजो नेशनल फ्रंट यानी एमएनएफ को 10, बीजेपी को 2 और कांग्रेस को 1 सीट मिली है।
कांग्रेस पार्टी को तेलंगाना छोड़कर हर जगह मुंह की खानी पड़ी है। खासकर हिंदी पट्टी यानी मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को जबरदस्त झटका लगा है। राजस्थान में तो 5-5 साल में सरकार बदलने की रवायत को देखते हुए कांग्रेस दिल पर पत्थर रखकर इसे कबूल भी कर लेती। लेकिन छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में क्या हुआ? क्या छत्तीसगढ़ में मोदीजी का महादेव ऐप को लेकर भूपेश बघेल पर 508 करोड़ रुपए खाने का आरोप काम कर गया। क्योंकि चुनाव के दौरान छत्तीसगढ़ के गांव-गांव तक ईडी के छापे और नोटों की गड्डियां निकलने की सच्ची या झूठी कहानी पहुंचा दी गई थी।
छत्तीसगढ़ में अगर शराब की बतहाशा बिक्री को थोड़ी देर के लिए छोड़ दें, तो बघेल सरकार के कामकाज को लेकर वहां लोगों में कोई खास शिकायत नहीं थी। किसान बहुत खुश थे। उनके कर्ज माफ किए गए थे। एमएसपी पर धान की खरीदी भी हो रही थी। और बघेल ने चुनाव जीतने की सूरत में इसे बढ़ाकर 3200 रुपए प्रति क्विंटल करने का वचन भी दे दिया था। फिर बघेल सरकार क्यों हार गई? अगर चुनाव नतीजों पर गौर करें तो छत्तीसगढ़ में बीजेपी को जहां 54 सीटें मिलीं हैं, वहीं कांग्रेस के खाते में महज 35 सीटें ही आ पाईं। तो क्या छत्तीसगढ़ में मोदी की गारंटी काम कर गई। या फिर बेतहाशा शराब को लेकर महिलाओं का गुस्सा फूटा है। क्योंकि भूपेश बघेल ने 2018 के चुनाव से पहले प्रदेश में शराबबंदी का वचन दिया था। लेकिन सत्ता संभालते ही वो अपना ये वचन भूल गए।
चलिए अब बात करते हैं मध्यप्रदेश की। जहां कांग्रेस को उम्मीद थी कि मामजी की चोरी से बनी सरकार को जनता अबकी सबक सिखाएंगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। चुनाव नतीजों में सबसे ज्यादा कामयाबी बीजेपी को मध्यप्रदेश में ही मिली है। चुनाव की भविष्यवाणी करने वाले सारे पंडित फेल कर गए। कई एक्जिट पोल भी चारो खाने चित नजर आए। और तो और बीजेपी के नेताओं को भी यकीन नहीं हो रहा कि ये चमत्कार आखिर कैसे हो गया? क्या शिवराज सरकार की लाडली बहना योजना ही इस जबरदस्त कामयाबी के पीछे है?
अपनी चुनाव यात्रा के दौरान मैं ग्वालियर, मुरैना, भिंड, श्योपुर समेत कई इलाकों में गया। जहां किसान परेशान मिले। हमें बहुत कम लोग मिले जिन्होंने ये कहा कि शिवराज सरकार की वापसी हो सकती है। फिर वो कौन सा जादू चला कि शिवराज सिंह को 230 में से 163 सीटें मिल गईं। और सरकार बनाने का दावा करने वाली कांग्रेस को महज 66 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। ये सवाल आने वाले दिनों में राजनीतिक गलियारों में पूछा जाता रहेगा।
अब बात करते हैं राजस्थान की, जहां गहलोत साहब के कामकाज से वहां के वोटरों को कोई शिकायत नहीं थी। यहां तक कि बीजेपी के कट्टर समर्थक भी कहते थे, गहलोत साहब ने बढ़िया काम किया है। किसानों की कर्ज और बिजली के बिल माफ किए गए हैं। चिरंजीवी योजना में 25 लाख तक का मुफ्त इलाज हो रहा है। हर जिले में इंग्लिश मीडियम स्कूल खुल रहे हैं। रोजगार के नए अवसर पैदा हो रहे हैं। लोगों को सरकारी नौकरियां मिल रहीं है। फिर गहलोत क्यों हार गए? चुनाव नतीजों पर नजर डाले तो राजस्थान में बीजेपी को 115 और कांग्रेस को महज 69 सीटे आईं हैं। तो राजस्थान में अच्छा काम कर रही एक सरकार आखिर क्यों हार गई? इसका जवाब यहां की रवायत और परंपरा में छुपा है। जिसके तहत लोग हर 5 साल में सरकार बदलने को आतुर नजर आते हैं।
चुनाव यात्रा के दौरान भरतपुर, धौलपुर, सवाई माधोपुर, अजमेर, जयपुर में कई लोग मिले जिन्होंने साफ-साफ कहा कि सरकार तो बदलनी ही है। आखिर क्यों, के जवाब में वो कहते कि कोई भी सरकार पिछले सरकारों की जन कल्याणकारी योजनाओं को बंद नहीं कर सकती। हां, उसमें कुछ जोड़ जरूर सकती है। उनका कहना था कि एक ही सरकार रहेगी तो तानाशाही आ जाएगी। इसीलिए सरकार को रोटी की तरह पलटते रहना जरूरी है।
अब बात तेलंगाना कि जहां बीजेपी हारकर भी जश्न मानती नजर आ रही है। उसे इस बात का संतोष है कि वो तेलंगाना में एक सीट से 8 सीट पर पहुंच गई है। अगर तेलंगाना के चुनाव नतीजों पर नजर डालें तो यहां कांग्रेस को 119 में से 64 सीटें आईं हैं, जबकि सत्ताधारी बीआरएस को 39 सीट पर ही सिमट गई। तेलंगाना राज्य के गठन के बाद अब यहां कांग्रेस की सरकार बन रही है।
तेलंगाना में बीआरएस की हार की सबसे बड़ी वजह रही किसानों को मदद पहुंचाने वाली रायतु बंधु योजना। जो चुनाव के ठीक पहले बैकफायर कर गई। दरअसल इस योजना के तहत हर एक एकड़ जमीन पर सरकार सालाना किसानों को 10 हजार रुपये दो किस्तों में देती है। मतलब अगर किसी किसान के पास ज्यादा जमीन है तो उसे ज्यादा फायदा होगा। कांग्रेस लोगों को ये समझाने में कामयाब रही कि उनकी सरकार आई तो वो 10 की जगह 15 हजार रुपये सालाना देंगे। दूसरे, इस योजना की समीक्षा की जाएगी और इसमें भूमिहीन और बटाईदार किसानों को भी जोड़ा जाएगा। ये बात लोगों को समझ आ गई और बीजेपी और एआईएमआईएम के परोक्ष सहयोग के बावजूद बीआरएस को कांग्रेस के हाथों मुह की खानी पड़ी।