Sunday, December 15, 2024
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थमने का नाम नहीं ले रहा कोरोना का कहर, मौतों के आंकड़ों में रोज इज़ाफ़ा

कोरोना को लेकर जितने मुंह उतनी बात। हर वैक्सीन के अपने दावे। सरकार की बंदिशें अपनी जगह। और लोग हैं कि कोरोना को लेकर अब ज्यादा फिक्रमंद नजर नहीं आते। सबके मन में एक ही सवाल है कि अगर सरकार कोरोना को रोकने में इतनी कामयाब रही है तो कोरोना से होनेवाली मौत के आंकड़े क्यूं बढ़ रहे हैं?

देश में कोरोना को लेकर ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है। आम लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि कोरोना बढ़ रहा है या घट रहा है? जब वैक्सीन की रफ्तार इतनी तेज है तो कोरोना से होनेवाली मौतों का आंकड़ा रोज-रोज क्यूं बढ़ रहा है? सरकार कभी लॉकडाउन लगाती है तो कभी इसमें ढील देती है। जब मौत के आंकड़ो ज्यादा होते हैं तो कुछ सरकारी टाइप के डॉक्टर कहने लगते हैं कि मरने वालों को कई दूसरी बीमारियां भी थीं और जब मौत के आंकड़े घटते हैं तो वही डॉक्टर कहते हैं कि ये सब वैक्सीन और लॉक डाउन का कमाल है। मगर कोरोना को इन सबसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता। मैं कोई पहेली नहीं बुझा रहा। आज की हकीकत यही है।

कोरोना के आंकड़ों पर नजर डालें तो बीते 24 घंटे में (29 जनवरी को) कोरोना से 892 लोगों की मौत हो गई। 28 जनवरी को कोरोना से 862 लोगों ने दम तोड़ दिया। 27 जनवरी को 627 लोग कोरोना के शिकार हुए। कुल मिलाकर बीते 22 जनवरी से लेकर अबतक, यानी बीते 8 दिनों में कोरोना से 5199 लोगों की मौत हो चुकी है। इस दौरान सभी राज्यों ने कोरोना को लेकर पर्याप्त सुरक्षात्मक कदम भी उठाए हैं और तमाम हिदायतें भी जारी की गई हैं। देश की 140 करोड़ की आबादी को वैक्सीन की 165 करोड़ से ज्यादा डोज भी लगे हैं, लेकिन कोरोना है कि मानने का नाम ही नहीं ले रहा।

दरअसल ये देखने में आ रहा है कि कोरोना हमारे चारो तरफ मौजूद है। जब जांच बढ़ती है तो कोरोना बढ़ जाता है और जैसे ही जांच में ढील दी जाती है कोरोना घट जाता है। क्योंकि अगर कोरोना वाकई में घट रहा है तो मौत के आंकड़ें क्यूं बढ़ रहे हैं? वैसे आंकड़ों पर नजर डालें तो बीते 22 जनवरी को कोरोना के 3.33 लाख मामले सामने आए थे, जबकि 29 जनवरी को इनमें कमी आई है और ये 2.34 लाख ही हैं। मगर 22 जनवरी को 511 लोगों की मौत हुई थी और 29 जनवरी को 892 लोगों ने दम तोड़ दिया। यानी केस तो कम हुए लेकिन मौत के आंकड़े बेतहाशा बढ़ गए हैं।

तो क्या हम कहीं इस मायावी कोरोना रोग को समझने, इसका इलाज ढूंढने में कहीं कोई गलती कर रहे हैं। क्या हमें वैक्सीन को लेकर समझ को और विकसित करने की जरूरत है? क्योंकि ऐसे हजारों मामले सामने आए हैं जिसमें वैक्सीन की दोनों डोज लेने के बाद भी मरीज की मौत हो गई। उनमें तो कई नामी-गिरामी डॉक्टर हैं, जिनपर इलाज या सतर्कता बरतने में लापरवाही के इल्जाम नहीं लगाए जा सकते। और तो और अब उम्रदराज लोगों को बूस्टर डोज और बच्चों को भी वैक्सीन दिए जा रहे हैं। फिर भी न तो हर्ड इम्युनिटी पैदा हो रही है और न ही मौत के आंकड़े ही थम रहे हैं।

भारत में अबतक कोरोना के कुल 4 करोड़ 11 लाख मामले सामने आए हैं। और इस महामारी की चपेट में आकर अबतक 4 लाख 94 हजार से ज्यादा लोग दम तोड़ चुके हैं। यानी स्थिति भयावह ही नजर आ रही है। ऐसे में क्या हमें कोरोना को रोकने में कामयाबी का ढिंढोरा पीटने या फिर वैक्सीन की संख्या को लेकर बड़बोलेपन की जगह पूरे मामले पर नए दृष्टिकोण से सोचने की जरूरत नहीं है? वैक्सीन की गुणवत्ता को फिर से जांचने की जरूरत नहीं है? आज लोग रोज-रोज थोपी जाने वाली नई-नई बंदिशों को लेकर अगर ज्यादा गंभीर नजर नहीं आते, तो इसकी वजह को भी समझने की जरूरत है।

संजय कुमार
संजय कुमार
संजय कुमार 1998 से अबतक टीवीआई, आजतक, इंडिया टीवी, राज्यसभा टीवी से जुड़े रहे हैं। बीते दो साल से स्वराज एक्सप्रेस न्यूज चैनल के कार्यकारी संपादक हैं।
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