हैदराबाद। तेलंगाना चुनाव के नतीजे जो भी हो, हैदराबाद की 7 सीटों पर असदुद्दीन ओवैसी साहब को इस दफे भी हराना मुश्किल है। वो पुराने हैदराबाद और खासकर चारमीनार इलाके के बेताज बादशाह हैं। लेकिन तेलंगाना चुनाव में बीआरएस को खुला समर्थन देकर उन्होंने अपनी राजनीतिक हैसियत घटा ली है। उनका कद छोटा पड़ गया है। दरअसल ओवैसी साहब अब उस कैंप में खुलकर शामिल हो गए हैं, जो देश में लोकतंत्र और भाईचारे की बात करने वाली कांग्रेस पार्टी या फिर कह लें इंडिया गठबंधन, को हर सूरत में शिकस्त देने को आतुर नजर आती हैं।
ओवैसी साहब अबतक देशभर में घूम-घूम कर चुनाव लड़ते रहे हैं। वो AIMIM को मुसलमानों के हितों की रक्षा करने वाली पार्टी बातकर वोट मांगते रहे हैं। बीते दिनों उन्हें कई कामयाबी भी मिली है। भले ही राज्यसभा में अबतक खाता नहीं खुला हो, लेकिन लोकसभा में AIMIM के पास दो सीटें हैं। वैसे, ओवैसी साहब पर आरोप लगते रहे हैं कि वो बीजेपी की मदद के लिए ही हर राज्य में अपने ढेर सारे उम्मीदवार उतारते हैं ताकि कौम का मसीहा बनकर वो मुसलमानों को कन्फ्यूज कर सकें और बीजेपी के हक में मुस्लिम वोटों का बंटवारा कर सके।
बहरहाल तेलंगाना में महज 9 सीटों पर चुनाव लड़ने और बाकी की 119 सीटों में से 110 सीटों पर बीआरएस को समर्थन देने के एलान से उनकी बंद मुट्ठी खुल गई है। क्योंकि बीआरएस और बीजेपी के बीच छुपे गठबंधन की बात किसी से छुपी नहीं है। ऐसे में ये कहा जा रहा है कि इस बार तेलंगाना में कांग्रेस के खिलाफ तीन पार्टियां एकजुट होकर चुनाव लड़ीं हैं। BRS, AIMIM और BJP.
तो सवाल ये कि क्या ओवैसी साहब तेलंगाना में मुसलमानों के वोटों का बंटवारा कर पाए, ताकि कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया जा सके। बीते दिनों उन्होंने बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश तक में अपनी पार्टी के विस्तार की कोशिश की है। बिहार में 2020 के चुनाव में उन्होंने आरजेडी को हराने के लिए सीमांचल इलाके में, जहां मुसलमानों की तादाद बहुत ज्यादा है, 20 उम्मीदवार उतारे और उनमें से 5 उम्मीदवार जीतने में भी कामयाब रहे। मगर इसका नतीजा ये हुआ कि आरजेडी की सरकार बनत-बनते रह गई। बीजेपी को जमकर फायदा हुआ। ये बात और है कि उनमें से AIMIM के चार विधायकों ने बाद में आरजेडी का दामन थाम लिया।
2022 के चुनाव में तो उन्होंने उत्तर प्रदेश से 95 उम्मीदवार उतार दिए। वो बमुश्किल आधा फीसदी वोट जुटा पाए लेकिन समाजवादी पार्टी को हराने में बड़ी भूमिका अदा कर दी। 2019 के महाराष्ट्र के चुनाव में भी AIMIM ने 44 उम्मीदवार उतारे थे। लेकिन 1.34 फीसदी वोट मिलने के बाद भी उन्हें कामयाबी नहीं मिली। मगर बीजेपी को कई सीटों पर जीत मुस्लिम वोटों के बंटवारे की वजह से ही मिली।
अब बात तेलंगाना की करें तो 2014 के चुनाव में AIMIM ने 35 उम्मीदवार उतारे थे और 7 सीटों पर कामयाबी हासिल की थी। तब नए राज्य के गठन के बाद 2014 में पहला चुनाव था। फिर केंद्र में मोदीजी की सरकार आई राज्य में केसीआर की सरकार गई। बीजेपी की बी टीम का तमगा हासिल करनेवाले ओवैसी साहब को लगा कि यहां उनके ज्यादा उम्मीदवार उतारने से तेलंगाना में बीआरएस को नुकसान हो सकता है। लिहाजा तेलंगाना में 2018 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने महज 8 उम्मीदवार ही उतारे। हालांकि दोनों दफे उन्हें 7 सीटों पर ही कामयाबी मिली।
2023 यानी इस बार के तेलंगाना चुनाव की बात करें तो देशभर में मुसलमानों के मसीहा बनने का दावा करने वाले ओवैसी साहब ने केवल 9 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। इतना ही नहीं उन्होंने खुलकर बीआरएस का समर्थन भी किया। ओवैसी साहब के इस फैसले के बाद माना जा रहा है कि देशभर में मुसलमानों के वोटों में बंटवारा करने की उनकी हैसियत को इससे गहरा धक्का लगा है। उनकी हालत अब कटी पतंग सी होने वाली है। क्योंकि मुमकिन है अब उनका वजूद तेलंगाना तक ही सिमट कर रह जाए। सवाल तो ये भी पूछा जाने लगा है कि क्या औवैसी साहब अब हैदराबाद के ही नवाब बनकर रह जाएंगे।