हैदराबाद। तेलंगाना में चुनाव मोटे तौर पर शांतिपूर्वक संपन्न होने के बाद जहां राजनीतिक पंडित भविष्यवाणी करने में जुटे हैं, वहीं बीआरएस और कांग्रेस सरकार बनाने का दावा कर रही है। बीजेपी ने पहले ही हथियार डाल दिया है। कुल जमा 9 सीट लड़ने वाली AIMIM ने पहले ही बीआरएस को सहयोग का एलान कर रखा है। कांग्रेस का कहना है कि वो अपनी 6 गारंटी की बदौलत 70 सीटें जीतकर सरकार बनाने जा रही है तो बीआरएस को अपनी शादी मुबारक, कल्याण लक्ष्मी, पेंशन स्कीम और दूसरी कल्याणकारी योजनाओं के लिए नकद राशि वितरण यानी डीबीटी से वोट मिलने का पक्का भरोसा है, जो उसकी सत्ता में वापसी कराएगा। असली नतीजे 3 दिसंबर को ही आएंगे, जब वोटों की गिनती शुरू होगी। तबतक कयासबाजी, दावों और प्रतिदावों का दौर चलता रहेगा।
बहरहाल हैदराबाद और सिंकदराबाद में जबरदस्त सख्ती के बीच मतदान संपन्न हुआ। चुनाव आयोग ने चारमीनार के इलाके में किसी अप्रिय घटना को रोकने के पुख्ता इंतजाम किए थे। और पूरे इलाके को छावनी में तब्दील कर दिया था। लेकिन यहां लोग जमकर मतदान करते देखे गए। पुराने हैदराबाद में महिलाओं ने बड़ी संख्या में मतदान में हिस्सा लिया। वहीं जुबली हिल्स, गायत्री हिल्स, गोशामहल और चंद्रायनगुट्टा में मतदाताओं की भारी भीड़ मतदान केंद्रों पर नजर आई।
इन सीटों पर चर्चित चेहरे चुनाव मैदान में हैं। चंद्रयानगुट्टा से ओवैसी के भाई अकबरुद्दीन हैं, तो जुबली हिल्स से क्रिकेटर अजहरुद्दीन चुनाव लड़ रहे हैं। गोशामहल से बीजेपी के चर्चित विधायक टी राजा सिंह मैदान में हैं, जिन्होंने एलान कर रखा है कि उन्हें मुसलमानों के वोट नहीं चाहिए। ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या वो इस तरह के सांप्रदायिक और भड़काऊ बयान देने के बाद भी चुनाव जीत पाते हैं या नहीं। हालांकि खासतौर पर उन्हें हराने के लिए बीआरएस और AIMIM ने काफी जोर लगाया है। उनके बयानों पर चुनाव आयोग ने अबतक कोई कार्रवाई नहीं की है।
बहरहाल चुनाव आयोग के आंकडो़ं के मुताबिक पूरे तेलंगाना में करीब 68 फीसदी से ज्यादा मतदान रिकॉर्ड किया गया है। हो सकता है जब मतदान के सभी आंकडो़ं आ जाएं तो इसमें 1-2 फीसदी का और इजाफा हो जाए। फिर भी ये 2018 के मतदान प्रतिशत से कम ही होगा। जो बीआरएस के लिए थोड़ी राहत की बात हो सकती है। हालांकि हैदराबाद और सिकंदराबाद जैसे बड़े शहरों के मुकाबले गांव-कस्बों और छोटे शहरों में मतदान ज्यादा हुआ है। जो बीआरएस के माथे पर चिंता की लकीरें खींच सकती है।
जहां तक एक्जिट पोल की बात है तो उनपर भरोसा करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है। दरअसल आजकल मतदाता बेहद चालाक और होशियार हो चुके हैं। वो मतदान केंद्रों से वोट देकर बाहर निकलते हुए आपको कन्फ्यूज कर देते हैं। ऐसे में कयासबाजी से बचते हुए तीन दिसंबर तक असली नतीजे का इंतजार करना ही बेहतर होगा। क्योंकि एक्जिट पोल करने वाली 7-8 एजेंसियों के नतीजे हमेशा अलग-अलग होते हैं। जिसका नतीजा ठीक होता है उसकी तो खूब वाहवाही होती है और गलत आकलन पेश करनेवालों को लोग भूल जाते हैं। और ये सिलसिला चुनाव-दर-चुनाव बदस्तूर चलता रहता है।