अगर महाराष्ट्र में शिवसेना पर कब्जे का मामला चुनाव आयोग और दलबदलू विधायकों का मामला सुप्रीम कोर्ट में नहीं होता तो आज महाराष्ट्र की राजनीतिक तस्वीर कुछ और हो सकती थी। महाराष्ट्र के स्पीकर राहुल नार्वेकर शिवसेना उद्धव गुट के दलबदलुओं पर फैसला लेने का मामला लगातार टालकर एकनाथ शिंदे की सरकार को बचाने का काम कर रहे हैं। क्योंकि दलबदल कानून लागू होते ही महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे की सरकार डांवाडोल हो सकती है। इसकी एक झलक सोमवार को महाराष्ट्र के मामले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के आदेश में भी नज़र आई।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में महाराष्ट्र के स्पीकर को अल्टीमेटम दिया कि वो 31 दिसंबर 2023 तक शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट के दलबदलुओं पर फैसला करें और 31 जनवरी 2024 तक एनसीपी शरद पवार गुट के दलबदलुओं के बारे में अपना फैसला सुनाएं। सुप्रीम कोर्ट ने बीते 13 अक्तूबर को शिवसेना और एनसीपी से जुड़ी अयोग्यता याचिकाओं पर सुनवाई ना करने और फैसले में देरी के लिए महाराष्ट्र के स्पीकर राहुल नार्वेकर को कड़ी फटकार लगाई थी। और 17 अक्तूबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर राहुल नार्वेकर को शिवसेना और एनसीपी की लंबित दलबदल याचिकाओं पर फैसला लेने का अंतिम अवसर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई.चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने सोमवार को शिवसेना विधायकों और एनसीपी विधायकों के खिलाफ अयोग्यता कार्यवाही में महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष द्वारा शीघ्र निर्णय लेने की मांग वाली याचिकाओं पर फिर सुनवाई की। कोर्ट ने महाराष्ट्र के स्पीकर को निर्देश दिया कि वो 31 दिसंबर तक शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट और 31 जनवरी 2024 तक एनसीपी शरद पवार गुट की ओर से दायर दलबदल याचिकाओं पर फैसला करें।
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई.चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि संविधान की 10वीं अनुसूची में सांसदों और विधायकों को दलबदल करने से रोकने के लिए कड़े प्रावधान किए गए हैं। लिहाजा इस मामले को और लटकाने की जगह विधायकों को अयोग्य घोषित करने की मांग से जुड़ी याचिकाओं पर फैसले लेने में देरी नहीं होनी चाहिए।