- संजय कुमार
पंजाब में अकाली दल को छोड़ दें तो सभी दल सही दुल्हे की तलाश में हैं। कोई खुद दुल्हा बनने को बेकरार नजर आ रहा है तो कोई किसी को दुल्हा बनाने को तैयार ही नहीं है। चुनाव में अब एक महीने का वक्त ही बाकी रह गया है। ऐसे में ये देखना बेहद दिलचस्प होगा कि क्या दुल्हे के नाम का ना होना क्या पंजाब में बड़े राजनीतिक दलों को नुकसान पहुंचा सकता है। आखिर पंजाब में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर अलग-अलग पार्टियों में इतनी कश्मकश क्यों है?
पंजाब में 14 फरवरी को चुनाव होने हैं। चुनाव मैदान में कांग्रेस. अकाली दल, बीजे
पी और आम आदमी पार्टी, सभी सरकार बनाने का दावा ठोक रहे हैं। अकाली दल के पास सुखबीर बादल नाम का चेहरा है। कांग्रेस ने भी हाल ही में अपने कैप्टन अमरिंदर सिंह को पैदल कर नवजोत सिंह सिद्धू के तमाम विरोधों के बावजूद चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया है। लेकिन जीत होने की हालत में कांग्रेस का उम्मीदवार कौन होगा? इसपर पार्टी खामोश है।
अकाली दल से पुराना साथ छूटने के बाद बीजेपी ने कांग्रेस से बाहर हुए कैप्टन अमरिंदर सिंह से हाथ मिलाया है, लेकिन वो भी कैप्टन को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने का हैंसला नहीं जुटा पा रहे हैं। वैसे भी पंजाब में बीजेपी के हाथ कुछ खास आने वाला नहीं है। रही सही कसर प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक को लेकर बीजेपी के बवाल ने पूरी कर दी है। पंजाब और पंजाबियत को ललकारने के बाद पार्टी का खाता भी खुल पाएगा, इसकी कम ही उम्मीद नजर आ रही है। वहीं आम आदमी पार्टी को पिछलीे विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री के चेहरे का एलान नहीं करने का खामियाजा भुगतना पड़ा था। लेकिन लगता नहीं है कि केजरीवाल ने इससे कोई सबक लिया है। वो भी मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर दुविधा में ही नजर आ रहे हैं।
आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो केजरीवाल ने फिलहाल पंजाब में मुख्यमंत्री के चेहरे के एलान को अगले हफ्ते तक के लिए टाल दिया है। जबकि मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित होने के लिए भगवंत मान साहब कब से इंतजार कर रहे हैं। पंजाब में ऐसी भी चर्चा है कि जीत मिलने की हालत मे केजरीवाल खुद ही पंजाब के मुख्यमंत्री बनने की ताक में लगे है। ऐसे में वो फिलहाल किसी ऐसे चेहरे को सामने रखना चाहते हैं जो काबिल और कद्दावर तो दिखाई देता हो, लेकिन उसका कोई जनाधार ना हो। ताकि वो घूम-घूमकर मुख्यमंत्री के चेहरे की तारीफ कर सकें, उसकी काबिलियत का बखान कर सकें और मौका आने पर आसानी से उसे पैदल कर सकें। लेकिन अगर वो भगवंत मान को चेहरा बनाते हैं तो उनके लिए ये काम इतना आसान नहीं होगा। क्योंकि एक तो भगवंत मान दो बार से लोकसभा का चुनाव जीतकर सांसद बन चुके हैं और दूसरे पंजाब में काफी लोकप्रिय भी माने जाते हैं। लिहाजा केजरीवाल कोई रिस्क नहीं लेना चाहते।
इधर नवजोत सिंह सिद्धू के लिए ये चुनाव करो या मरो जैसा ही है। अगर इसबार उन्हें मुख्यमंत्री बनने में कामयाबी नहीं मिलती है तो फिर उन्हें अगले मौके के लिए बहुत लंबा इंतजार करना पड़ सकता है। इसीलिए वो अपनी ही सरकार के कामकाज की आलोचना कर कांग्रेस आलाकमान पर दबाव बना रहे हैं। वहीं प्रधानमंत्री मोदी की सुरक्षा चूक मामले पर हो रहे राजनीतिक प्रहार को मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने जिस दिलेरी और खूबसूरती से हैंडल किया है, जिस परिपक्वता का परिचय दिया है, उसने सिद्धू के मुकाबले उनके कद को बड़ा बना दिया है। चन्नी का दलित होना भी उनके लिए एक बड़ा प्लस प्वाइंट हैं। क्योंकि पंजाब चुनाव के नतीजों को दलित वोटर हमेशा प्रबावित करते रहे हैं। सिद्धू इससे बौखलाए हुए हैं और घुमा-फिरा कर अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री को नाकाबिल बता रहे हैं और खुद को मुख्यमंत्री का सबसे काबिल उम्मीदवार बताने में एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस के लिए लाजिमी है कि वो इस मुद्दे को सुलझाए और दिल पर पत्थर रखकर किसी एक नाम का एलान जल्दी करे। वर्ना, ‘पंजाब में कांग्रेस ही कांग्रेस को हरा सकती है’ वाला सिद्धू का जुमला सच भी साबित हो सकता है।
—