धौलपुर विधानसभा क्षेत्र की कहानी जीजा-साली की कहानी से वाबस्ता है। कांग्रेस पार्टी ने हाल ही में पाला बदलने वाली वर्तमान विधायक शोभारानी कुशवाहा को टिकट दिया है तो बीजेपी ने मुकाबले में उनके जीजा जी डॉ शिवचरण सिंह कुशवाहा को मैदान में उतारा है। 2018 चुनाव में भी दोनों एक-दूसरे के खिलाफ ही मैदान में थे। बीजेपी की उम्मीदवार शोभारानी कुशवाहा ने कांग्रेस से लड़ रहे अपने जीजा जी डॉ शिवचरण सिंह कुशवाहा को कड़ी शिकस्त दी थी। शोभारानी कुशवाहा को 2018 में 67349 वोट मिले थे जबकि उनके जीजा जी शिवचरण सिंह कुशवाहा को महज 47989 वोटों से ही संतोष करना पड़ा था।
राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में क्रास वोटिंग के बाद बीजेपी ने विधायक शोभारानी कुशवाहा को दरकिनार कर दिया। लिहाजा मौके पर चौक्का लगाते हुए कांग्रेस से टिकट के दावेदार डॉ शिवचरण सिंह कुशवाहा ने बीजेपी का दामन थाम लिया। बीजेपी ने भी कांग्रेस से आए डॉ शिवचरण सिंह कुशवाहा को गले लगाने में देर नहीं की और पाला बदलने वाले जीजा जी डॉ शिवचरण सिंह कुशवाहा को अपना उम्मीदवार बना दिया। उधर साली जी भी कम नहीं निकलीं। बीजेपी से टिकट कटने की भनक लगते ही शोभारानी कुशवाहा ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। कांग्रेस ने भी उन्हें धौलपुर से टिकट देने में देर नहीं की। लिहाजा धौलपुर सीट पर जीजा साली की टक्कर से मुकाबला एक बारफिर बेहद दिलचस्प होने जा रहा है।
दरअसल चंबल नदी के किनारे बसा धौलपुर जिला बीहड़, अवैध बजरी और डकैतों के लिए सुर्खियों में रहा है। इस इलाके में जाट समुदाय का वर्चस्व रहा है। धौलपुर की चारों विधानसभा सीटें किसानों और जाटों के प्रभाव वाली हैं। राजस्थान में माना जाता है कि जिनके साथ जाट और किसान हैं, उनकी जीत तय है। यहां मोदी फैक्टर यानी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कमजोर ही दिखता है। अगर स्थानीय चुनावों की बात करें तो 2021 में जिला परिषद में कांग्रेस ने 23 वार्ड में से 17 पर जीत हासिल की था और बीजेपी 6 वार्ड पर ही सिमट कर रह गई थी। ऐसा माना जाता है कि 2018 में यहां के जाट और सवर्ण समुदाय ने ज्यादातर कांग्रेस को वोट दिया था, लेकिन जीत बीजेपी की शोभा रानी कुशवाहा की ही हुई थी। इस बार शोभारानी कांग्रेस की टिकट पर क्षेत्र की जनता से वोट मांग रहीं हैं।
अगर विकास की बात करें तो राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का गृह जिला होने के बावजूद धौलपुर विकास में पिछड़ा ही रहा हैं। यहां की सड़कों पर इतने गड्ढे हैं कि अगर आप पहली बार आए हैं तो परेशान हो जाएंगे। क्योंकि कोई बड़ा हादसा कभी हो सकता है। धौलपुर के स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी संगठन के अध्यक्ष कृष्णमोहन जी बताते हैं कि यहां के कई इलाकों में सीवर लाइन डाली ही नहीं गईं हैं। कहीं इसे बीच में ही छोड़ दिया गया है। जिले में पीने के पानी की घोर किल्लत है। 1988 से यहां से चंबल पर सेवर पुल की मांग हो रही है लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। यहां के लोग शहर के सुभाष पार्क, गांधी पार्क और नेहरू पार्क को मिलाकर एक पार्क बनाए जाने से भी नाराज़ नजर आते हैं।
अवैध खनन इस क्षेत्र की एक बड़ी समस्या है। लेकिन कहते हैं कि यहां के खनन माफिया को दोनों दलों का संरक्षण हासिल हैं। दरअसल खनन माफिया के भी दो दल हैं जो दोनों दलों के फाइनेंसर माने जाते हैं। पूर्वी राजस्थान का इलाका होने से पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना यहां बड़ा चुनावी मुद्दा है। इस योजना से धौलपुर समेत राजस्थान के 13 जिलों की करीब 3 करोड़ की आबादी को पेयजल और खेतों के लिए सिंचाई का पानी मिलेगा। ERCP आने से भरतपुर, डीग, अलवर, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, दौसा, जयपुर, टोंक, बारां, बूंदी, कोटा, अजमेर और झालावाड़ के लोगों को जहां शुद्ध पेयजल मिलेगा, वहीं किसानों को भी फायदा होगा।
धौलपुर जिले के चारों विधानसभा के सियासी समीकरण पर नजर डालें तो मुकाबला कांटे का नजर आ रहा है। धौलपुर, राजाखेड़ा, बसेड़ी और बाड़ी विधानसभा क्षेत्र में लोग गहलोत सरकार की योजनाओं की तारीफ करते हैं। गहलोत सरकार के खिलाफ लोगों में कोई खास नाराजगी नजर नहीं आती। लेकिन पांच-पांच साल में सत्ताधारी दल को बदलने की आदत और परंपरा इस बार टूट जाएगी, फिलहाल ये कह पाना मुश्किल ही है।
धौलपुर के जाट ओबीसी स्टेटस की मांग कर रहे हैं। यहां विकास और इंफ्रास्ट्रकचर को लेकर जनता में संतुष्टि नहीं है। करौली और धौलपुर के बीच एक रेल लाइन की मांग लंबे समय से हो रही है। वैसे धौलपुर में 2003 तक कांग्रेस का दबदबा रहा है लेकिन अब बीजेपी का गढ़ माना जाता है। 1985 में बीजेपी से वसुंधरा राजे ने बनवारी लाल शर्मा को हरा कर जीत दर्ज की थी लेकिन 1993 के चुनाव में बनवारी लाल शर्मा ने वसुंधरा को हरा कर जीत दर्ज की। 2018 के विधानसभा चुनाव में पूर्वी राजस्थान के भरतपुर संभाग में बीजेपी को मात्र एक सीट धौलपुर में ही जीत मिली थी। इस बार दोनों पार्टियों की नजर भरतपुर संभाग पर है तो कांग्रेस पार्टी अपने गढ़ को बचाने के प्रयास में जुटी है।
बीजेपी प्रत्याशी डॉ शिवचरण सिंह कुशवाहा टिकट मिलने के बाद अपनी साली जी शोभारानी कुशवाहा पर जमकर हमले बोल रहे हैं। परिवार का झगड़ा अब सड़कों पर नजर आने लगा है। बीजेपी इस बात को भी भुना रही है कि शोभा रानी कुशवाहा के पति बनवारी लाल कुशवाहा चिट फंड घोटाले में फिलहाल जेल में हैं। हालांकि वो पैरोल पर जेल से आते-जाते रहते हैं। वो पूर्व में भी चुनाव को प्रभावित करने में भी अपनी अहम भूमिका निभा चुके हैं। शिवचरण सिंह कुशवाहा शोभारानी कुशवाहा की बहन के पति यानी जीजा जी हैं। 2018 के चुनाव में भी जीजा साली एक-दूसरे के खिलाफ़ चुनाव लड़ चुके हैं। जिसमें साली जी ने जीजा जी को पटखनी दे दी थी।
धौलपुर विधानसभा में जातिगत समीकरण पर निगाह डालें ते यहां कुशवाह 40 हजार, मुस्लिम 20 हजार, एससी 28 हजार और ब्राह्मण, जाटव की भी अच्छी संख्या है। इसके बाद गुर्जर, ठाकुर, वैश्य, लोधी, त्यागी और जाट समाज की तादाद भी अच्छी खासी है। पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ERCP) इस बार यहां का सबसे बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है। ये पहली मौका है जब किसानों की कोई परियोजना चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा है। क्योंकि इस योजना की जद में राजस्थान के 13 जिलों की कुल 200 सीटों में से 83 विधानसभा सीटें आती हैं। जसका फायदा 3 करोड़ लोगों को मिलने वाला है। इन 13 जिलों में से 7 जिलों में कांग्रेस की स्थिति मजबूत है। 2018 के विधानसभा चुनावों में 13 जिलों की 83 विधानसभा सीटों में से 61 फीसदी यानी 51 सीटें कांग्रेस ने जीती थीं। साथ ही कुछ और सीट पर उसके समर्थित निर्दलीय, बहुजन समाज पार्टी (BSP) और अन्य पार्टियों के खाते में गई थी।
धौलपुर के चार विधानसभा का हाल ( 2018 चुनाव में)
विधानसभा | Winning Party Vote Share | Runner Party Vote Share | 2nd Runner Party |
DHOLPUR | BJP- 46.2% | INC- 32.9% | BSP- 14.6% |
BASERI (SC) | INC- 45.7% | BJP- 30.9% | IND- 15.6% |
BARI | INC- 44.3% | BJP- 33.4% | BSP- 20.5% |
RAJAKHERA | INC- 53.7% | BSP- 43.2% | BSP- 1.1% |
अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, टोंक, सवाई माधोपुर, दौसा जिले में 39 विधानसभा सीट हैं। 2018 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने 25 सीट इन जिलों में जीती थी. बाकी पांच बीएसपी, चार निर्दलीय और एक आरएलडी के खाते में गई। हाल ही में राजस्थान सरकार ने ईआरसीपी में 53 बांधों को शामिल किया था। पहले यह संख्या 26 ही थी. इस तरह अब योजना के दायरे में कुल 79 बांध आ गए हैं। ये करीब 40 हजार करोड़ रुपए की योजना है। अब तक राज्य सरकार ने ईआरसीपी के लिए 14 हजार करोड़ रुपये स्वीकृत किए हैं।
ईआरसीपी योजना को लेकर कांग्रेस और भाजपा में जुबानी जंग जारी है। कांग्रेस पार्टी की तरफ से एक संदेश जनता में दिया जा रहा है कि केन्द्र सरकार जानबूझकर इस जल और सिंचाई परियोजना को अटका रही है। कांग्रेस इसका ठीकरा मोदी सरकार के सिर पर फोड़ रही है और वो जलशक्ति मंत्री गजेन्द्रसिंह शेखावत पर हमलावर है। वहीं बीजेपी का कहना है कि इसमें जल बंटवारे को लेकर मध्य प्रदेश से अनुमति नहीं ली गई है। वहीं अशोक गहलोत इस मुद्दे पर पूर्वी राजस्थान के लोगों को एकजुट करने और केन्द्र सरकार पर ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा देने का दबाव बना रहे हैं। फिलहाल ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने का मामला दिल्ली के केन्द्रीय जल आयोग में विचाराधीन है।
इस परियोजना की अहमियत को इससे समझा जा सकता है कि गंगापुर सिटी आए गृहमंत्री अमित शाह की सभा में लोगों ने ईआरसीपी की मांग को लेकर झंडे-बैनर दिखाए। जलशक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत को करौली में युवा कांग्रेस के लोगों ने काले झंडे दिखाकर उनका काफिला तक रोक लिया। इन सबके बावजूद अगर इस इलाके में कांग्रेस अपनी जीत को लेकर आशवस्त नहीं है तो इसकी एक ही और सबसे बड़ी वजह है यहां के लोगों की परंपरा को लेकर सोच। यहां के वोटर काम को तव्वजो ना देकर रोटी की तरह सरकार को बार-बार पलटने में यकीन रखते हैं।
(रिसर्च इनपुट रिज़वान रहमान)