अयोध्या स्टेशन पर भारी निर्माण कार्य चल रहा है। नए रेलवे स्टेशन का काम दिनरात जारी है। मानो अयोध्या नगरी के कायाकल्प की योजना को अमली जामा पहनाया जा रहा हो। लेकिन स्टेशन से बाहर निकलते ही ये धारणा टूटने लगती है। चुनाव सिर पर है तो शहर में गहमागहमी होनी चाहिए थी। लेकिन लोगों के चेहरे पर खामोशी और मायूसी है। राम मंदिर को लेकर कहीं कोई उत्साह नजर नहीं आता। अयोध्या के लोग मंदिर निर्माण के बाद रोजगार और कारोबार के छिन जाने की चिंता में डूबे नजर आते हैं। उनका कहना है कि जो निर्माण कार्य चल रहा है उसमें स्थानीय लोगों की भागीदारी होने की संभावना नहीं के बराबर है।
राम मंदिर निर्माण स्थल पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद विवाद खत्म हो गया है। लेकिन राम लला के दर्शन के लिए सुरक्षा और पाबंदियां बदस्तूर जारी है। तीन-चार लेयरों की सुरक्षा घेरे के बाद राम लला के दर्शन होते हैं। बीते 10 वर्षों में अगर यहां कुछ बदला है तो बस ये कि अब राम लला टेंट में नहीं है। उसकी जगह एक अस्थायी शेडनुमा ढांचा खड़ा कर दिया गया है। हां, मंदिर के आसपास की जमीन पर पत्थरों और मशीनों के ढेर लगे हैं। लेकिन काम की रफ्तार सुस्त ही नजर आती है। शायद चुनाव के बाद इसमें रफ्तार देखने को मिले।
मंदिर परिसर के आसपास के दुकानदार मंदिर निर्माण से खासे खफा नजर आते हैं। उनका कहना है कि मंदिर के लिए रास्ते का चौड़ीकरण किया जा रहा है और उनकी दुकानें तोड़ी जा रहीं है। कई दुकानें पहले ही तोड़ी जा चुकीं हैं और बाकी दुकानों पर उनके साइज लिख दिए गए हैं। जितनी बड़ी दुकान, उतना ही मुआवजा। करीब 5 मीटर की दुकान के लिए ढाई लाख के करीब मुआवजा मिलने की संभावना है। जिसे लोग नाकाफी बताते हैं। दुकानदारों का कहना है कि मुआवजा लेकर क्या करेंगे, हमें तो दुकान के बदले दुकान चाहिए। लेकिन स्थानीय बीजेपी विधायक वेद प्रकाश गुप्ता इस सवाल पर कन्नी काटते नजर आते हैं। जिसका खामियाजा उन्हें इस चुनाव में भुगतना पड़ेगा।
राम मंदिर निर्माण के रास्ते में आनेवाले दुकानदारों का कहना है कि यहां करीब 300 दुकानें बनाईं जा रहीं हैं, लेकिन उनमें से एक भी दुकान स्थानीय लोगों को देने की बात नहीं हो रही। हमें यहां से काफी दूर दुकान देने की बात की जा रही है, जहां कोई कारोबार नहीं हो सकता। हनुमान गढ़ी के पास लड्डू बेचने वाले एक दुकानदार कहते हैं कि हमारे सामने तो भूखे मरने की नौबत आने वाली है। जिन दुकानों की अभी नपाई नहीं हुई है वो भी भयभीत और आशंकित ही नजर आते हैं। राम मंदिर के इलाके को छोड़ दें तो बाकी शहर में कोई खास तब्दीली नजर नहीं आती। बाजार में ज्यादा ग्राहक नजर नहीं आते। गंदगी, गड्ढे वाली सड़कें और वाहनों की भीड़, सबकुछ पहले जैसा ही है।
राम मंदिर निर्माण के लिए पत्थरों की कटाई-छंटाई और उनपर नक्काशी के काम में भी कोई खास रफ्तार नजर नहीं आती। श्री राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण कार्यशाला में पहले जहां दो-तीन कारीगर ही नक्काशी का काम करते थे वहां सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद करीब एक दर्जन कारीगरों को काम पर लगाया गया है।
राम मंदिर निर्माण के लिए कार्यशाला में पत्थरों के ढेर
राजस्थान से आने वाले इन कारीगरों को नहीं मालूम की राम मंदिर निर्माण का काम कब तक पूरा हो पाएगा। उनका कहना है कि एक पत्थर को तराशने और उनपर नक्काशी करने में छह महीने का वक्त लग जाता है। कार्यशाला में पत्थर काटने वाली मशीन पहले की तरह ही जंग खा रही है। अबतक काटे और तराशे गए पत्थर जस के तस पड़े हैं। शायद उन्हें जरूरत के हिसाब से यहां से ढोया जाएगा।
अयोध्या आने वाले लोग सरयू नदी में डुबकी जरूर लगाते हैं। नदी के किनारे पंडितों और नाव वालों की फौज नजर आती है। दोनों बीजेपी से नाराज नजर आते हैं। उनका कहना है कि अयोध्या का विकास अखिलेश सरकार के जमाने में ही हुआ है। यहां के विधायक बीते 5 सालों में नजर नहीं आए हैं। नाव से सरयू नदी की सैर कराने वाले भी कहते हैं, राम मंदिर बनेगा तो हमारी रोजी-रोटी चली जाएगी। फिर मोटर से चलने वाले महंगे जहाज यहां आ जाएंगे। जो विदेशी टूरिस्टों को घुमाएंगे। वैसे सरयू नदी के तट पर राष्टभक्त, हिंदूवादी और मोदीभक्त भी मिलते हैं, लेकिन वो थोड़ी सी जिरह के बाद ही हथियार डाल देते हैं। कहते हैं, ‘जोर तो भइया साइकिल का ही है।’
यहां ठहरने और खाने पीने के लिए गिने-चुने होटल हैं। लेकिन ये तस्वीर जल्दी ही बदलने वाली है। एक होटल वाले कहते हैं कि मंदिर निर्माण से जुड़े लोगों ने अयोध्या के आसपास की सारी जमीनें औने-पौने दाम पर खरीद ली है। जिनपर अब बड़े-बड़े होटल खुलेंगे। वो गहरी सांस लेते हुए कहते हैं कि तीन पुश्त अयोध्या में गुजारने के बाद लगता है कि आने वाले दिनों में रोजी-रोटी के लिए कहीं पलायन की नौबत ना आ जाए। वैसे यहां भव्य राम मंदिर बने, इसपर किसी को कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन स्थानीय निवासी चाहते हैं कि इस काम में अयोध्यावासियों की भागीदारी और हिस्सेदारी, दोनों ही सुनिश्चित होनी चाहिए। जो फिलहाल कहीं नजर नहीं आती है।