केरल की लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी एलडीएफ (LDF) की सरकार के केरल पुलिस अधिनियम संशोधन अध्यादेश को केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान (Arif Mohammad Khan) की मंजूरी मिलते ही इसपर बवाल शुरू हो गया है।
इस अध्यादेश में साइबर क्राइम यानी सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट डालने पर कार्रवाई को लेकर पुलिस को असीमित अधिकार दिए गए हैं। साथ ही किसी शख्स को पांच साल की कैद या 10 हजार रुपए जुर्माना या फिर दोनों एकसाथ देने का प्रावधान रखा गया है। केरल के मुख्य विपक्षी गठबंधन यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी यूडीएफ(UDF) समेत तमाम विपक्षी दलों ने इस अध्यादेश को लेकर एलडीएफ सरकार पर निशाना साधा है। और इसका कड़ा विरोध करते हुए इसे प्रेस और अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाने वाला, छीनने की कोशिश वाला कानून बताया है।
केरल सरकार पर इस अध्यादेश को लेकर सबसे तीखा हमला कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम(P Chidambaram) ने बोला है। चिदंबरम का कहना है कि वो इस अध्यादेश की मंजूरी की खबर से स्तब्ध हैं। उन्होंने एक के बाद एक ट्वीट कर कहा, ‘मेरे मित्र और सीपीआई (एम) के महासचिव सीताराम येचुरी इस अत्याचारी और आत्मघाती फैसले का बचाव कैसे करेंगे?’ हालांकि केरल सरकार ने इस अध्यादेश का मकसद महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध साइबर हमलों को रोकना बताया है। जिसपर ढेरो सवाल खड़े हो रहे हैं।
केरल की LDF सरकार द्वारा ‘सोशल मीडिया पर तथाकथित आपत्तिजनक पोस्ट’ करने के कारण 5 साल की सजा सुनकर स्तब्ध हूं।
— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) November 22, 2020
यह है विवादित अध्यादेश
दरअसल पिछले महीने केरल सरकार ने पुलिस अधिनियम को और सशक्त बनाने के धारा 118-ए को इसमें शामिल करने की सिफारिश की थी। जिसके तहत जो कोई सोशल मीडिया के माध्यम से किसी पर धौंस दिखाने, अपमानित करने, बदनाम करने के इरादे से कोई सामग्री प्रकाशित या प्रसारित करता है तो उसे इस कानून के मुताबिक पांच साल जेल या दस हजार रुपए जुर्माना या फिर दोनों सजा हो सकती है। इस विवादित अध्यादेश को लाने के पीछे केरल सरकार की दलील है कि साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने केरल के आईटी एक्ट के सेक्शन 66-ए और केरल पुलिस एक्ट की धारा 118 (डी) को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि ये कानून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ हैं। तबसे साइबर क्राइम से निपटने के लिए राज्य सरकार के पास कोई कानून नहीं था। इधर कोविड महामारी के दौरान सोशल मीडिया पर नफरत और अफवाह को जिस तेजी से फैलाने की घटनाएं सामने आईं हैं उससे आम नागरिकों की निजता खतरे में पड़ गई है। ऐसे में पुलिस को साइबर अपराधों से निपटने की शक्ति प्रदान करने के मकसद से ही इस अध्यादेश को लाना पड़ा है।
केरल के इस नए अध्यादेश पर हो हल्ला स्वाभाविक ही है। दरअसल जब आप कानून बनाकर दूसरों की आजादी पर अंकुश लगाते हैं तो अपनी आजादी पर भी अंकुश लगा रहे होते हैं। जिस कानून से आप अपने विरोधियों को रोकना चाहते हैं, कल को उसी कानून का इस्तेमाल आपकी सरकार और आपकी पार्टी के लोगों के खिलाफ भी हो सकता है।
टाडा(TATDA) और पोटा(POTA) कानून इसके सबसे बड़े उदाहरण के रूप में देखे जा सकते हैं। इस कदम को इसलिए भी प्रतिगामी ही माना जाएगा क्योंकि इसे लाने वाली यूडीएफ सरकार अरसे से अभिव्यक्ति की आजादी की पक्षधर रही है और मोटे तौर पर फ्रांस के दार्शनिक फ्रांस्वा मेरी ऐरोएट, जिन्हें दुनिया वाल्तेयर के नाम से जानती है, के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सूत्र वाक्य पर यकीन करती रही है।
वाल्तेयर ने कहा था, ‘जरूरी नहीं कि मैं आपकी बात से सहमत रहूं, लेकिन मैं आपके बोलने के अधिकार की मरते दम तक रक्षा करूंगा।‘ मगर अफसोस केरल की एलडीएफ सरकार ने भी साइबर अपराधियों पर लगाम के लिए वही रास्ता अख्तियार किया है जो आगे चलकर आम लोगों की अभिव्यक्ति की आजादी के गले की हड्डी बन जाएगा।
इस अध्यादेश को लेकर आज अगर कोई सबसे ज्यादा खुश हो रहा होगा तो वो बीजेपी और आरएसएस के लोग ही होंगे, जिनके सामने अब अपनी तानाशाही को आगे बढ़ाने में कोई शर्म, संकोच, दुविधा और हिचक नहीं होगी। अब अभिव्यक्ति की आजादी पर कुठाराघात को लेकर आप इनके खिलाफ बोलेंगे तो वो केरल का उदाहरण सामने रख देंगे। ऐसे में ये वक्त अभिव्यक्ति की आजादी के लिए सदियों से संघर्ष करने वाले लोगों को विचार करने का है ताकि केरल सरकार अपने इस नए साइबर कानून को वापिस ले और फासीवादी ताकतों के हाथों में लोकतंत्र को कुचलने का एक औजार थमाने के कलंक से बच जाए।