तेलंगाना में रायतु बंधु योजना को लेकर बवाल भले ही फिलहाल थम गया हो लेकिन यहां के लोग यही सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर चुनाव आयोग ने रायतु बंधु योजना की रकम बांटने का आदेश देकर वापस क्यों ले लिया? क्या इसमें केवल चुनाव की आदर्श आचार संहिता का मामला था या फिर रकम के बंटवारे का पहले आदेश देने और फिर अपने ही आदेश को वापस लेने का लिए एक बहाना ढूंढा गया। क्योंकि चुनाव आयोग ने जिस लचर दलील के साथ इस योजना के तहत किसानों के खाते में दूसरी किस्त के 7300 करोड़ के बंटवारे का आदेश दिया था, उससे भी ज्यादा लचर दलील के साथ अपने ही आदेश को वापस ले लिया। जो तेलंगाना के लोगों के मन में भारी संदेह पैदा कर रहा है। लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि तेलंगाना में केसीआर की रायतु बंधु योजना बैकफायर कर गई है।
आज से 4 दिन पहले यानी 24 नवंबर को चुनाव आयोग ने अति उत्साह और जोश में रायतु बंधु योजना के तहत 65 लाख किसानों के खाते में डीबीटी के माध्यम से 7300 करोड़ रुपये चुनाव से ठीक पहले, यानी 28 नवंबर तक भेजने की मंजूरी राज्य सरकार को दी थी। तो फिर चुनाव आयोग ने अपना आदेश वापस क्यों ले लिया? क्या ये माना जाए कि चुनाव से ऐन पहले रायतु बंधु योजना की रकम किसानों के खाते में पहुंचने से बीआरएस को फायदे की जगह नुकसान होने जा रहा था। जिसे केसीआर ने समय रहते भांप लिया। लिहाजा चुनाव आयोग के जिस आदेश को लेकर हर जगह किरकिरी हो रही थी, उसे वापस लेने की जमीन खुद तेलंगाना सरकार ने तैयार की। ताकि चुनाव आयोग के पास आदेश को वापस लेने की एक दलील पैदा हो सके और कांग्रेस पार्टी इस मुद्दे को चुनाव में भुना ना सके।
तेलंगाना में रायतु बंधु योजना के तहत साल 2018 से किसानों को रबी और खरीफ की दो फसलों के लिए 5-5 हजार रुपए प्रति एकड़ देने का प्रावधान है। यानी अगर एक किसान के पास एक एकड़ जमीन है तो उसे सरकार से सालाना 10 हजार रुपए मिलेंगे। इसी तरह अगर एक किसान के पास 10 एकड़ जमीन है तो उसे 1 लाख रुपए सरकार से मिल जाएंगे। लेकिन अगर किसी के पास जमीन नहीं तो उसे इस योजना के तहत कोई रकम नहीं मिल पाएगी। यही हाल बटाईदारी पर काम करने वाले किसानों का भी है। उन्हें इस योजना में शामिल नहीं किया गया है। कांट्रेक्ट फार्मिग करने पर ये रकम जमीन के मालिकों को मिलती है, बटाईदारों को नहीं। कांग्रेस ने चुनाव में इसे मुद्दा बनाया है और रायतु बंधु योजना की समीक्षा के साथ ही सहायता की रकम को 10 हजार की जगह 15 हजार करने का वादा किया है।
कांग्रेस की 6 गारंटियों, रायतु बंधु योजना की रकम बढ़ाने और इसमें बटाईदार किसानों को भी शामिल करने और जिनके पास जमीन नहीं है उन्हें भी इस योजना का लाभ दिलाने की घोषणा से तेलंगाना सरकार को जमीन खिसकती दिखाई देने लगी है। तभी केसीआर को भी रायतु बंधु योजना के तहत दी जानेवाली 10 हजार की राशि को बढ़ाकर 16 हजार करने का एलान करना पड़ा है। लेकिन कांग्रेस रायतु बंधु योजना को लेकर जो मुद्दे उठा रही है वो लोगों के समझ में आ रहा है।
यहां के लोगों का कहना है कि रायतु बंधु योजना का लाभ ज्यादातर बड़ी जोत वाले अमीर किसानों को होता है। जिसके पास जितनी ज्यादा जमीन होती है उसे उतना ही ज्यादा फायदा होता है। और जिसके पास थोड़ी सी जमीन है या फिर जमीन है ही नहीं, उसे इस योजना का कोई खास लाभ नहीं मिलता। बटाईदारों को इसमें शामिल ही नहीं किया गया है। जबकि कांग्रेस ने इस योजना की समीक्षा करने की बात कही है। ताकि इसका लाभ तेलंगाना के गरीब किसानों को ज्यादा मिल सके। बटाई पर खेती करने वालों को भी उनका हक मिल सके।
यही वजह है कि चुनाव से पहले तेलंगाना के 65 लाख किसानों के बीच 7300 करोड़ रुपए बांटने की योजना को विराम दिया गया है। क्योंकि चुनाव से पहले इस रकम के बंटवारे से जितने किसानों के वोट बीआरएस को मिलते उससे चार गुना ज्यादा वोट कट जाने का खतरा था। छोटी जोत वाले किसान और बटाईदार जिनके हिस्से में इस योजना की बहुत थोड़ी रकम आती है, वो पहले से ही नाराज चल रहे हैं। जबकि योजना के लिए सालाना आवंटित करीब 18 हजार करोड़ रुपए का एक बड़ा हिस्सा बड़े किसानों की झोली में ही चला जाता है। कांग्रेस इसी मुद्दे को तेलंगाना के गांव-गांव में लेकर गई है। हालांकि उसे पता है कि रायतु बंधु योजना की समीक्षा से बड़े किसान नाराज हो सकते हैं। लेकिन उनकी संख्या बेहद कम है। सवाल वही तो क्या रायतु बंधु योजना से केसीआर सरकार को चुनाव में फायदा से ज्यादा नुकसान होने जा रहा है? इसका सही जवाब 3 दिसंबर को मिलेगा जब वोटों की गिनती होगी और राज्य में नई सरकार का गठन होगा।