-विमल कुमार
हनुमान- प्रभु! आप अयोध्या कैसे जाएंगे ट्रेन से या प्लेन से?
राम- हनुमान, पुष्पक विमान से अयोध्या जाऊंगा।
हनुमान- हां! महाराज! पिछले दिनों मैंने एक कार्टून में देखा था आप पुष्पक विमान से अयोध्या में उतर रहे हैं लेकिन वह पुष्पक विमान तो इंडियन एयरलाइंस के विमान की तरह था।
राम- लेकिन मैंने यह भी देखा था कि तुम उस विमान के पायलट हो और उसे तुम उड़ा रहे हो।
हनुमान- हां, प्रभु! अगर आप विमान से जाएंगे तो मुझे ही उसे उड़ाना होगा। नहीं तो पता नहीं, कोई उसे क्रैश करा देगा।
राम- लेकिन हमने उस कार्टून में यह भी देखा कि हमारे स्वागत में फकीर साहब भी खड़े हैं।
हनुमान- हां, महाराज! कार्टून में मैंने भी यह देखा, लेकिन एक बात पूछूं महाराज, आप सीता मैया को छोड़कर अयोध्या क्यों जा रहे हैं?
राम- हनुमान, मंदिर तो मेरा बन रहा है और सीता को उन्होंने बुलाया भी नहीं है, तो भला मैं अपनी पत्नी को लेकर कैसे जाऊं?
हनुमान- लेकिन यह बहुत गलत हो रहा है प्रभु! सीता मां आपके साथ आपकी परछाई की तरह पीछे लगी रहती थी, लेकिन मंदिर केवल आपका बन रहा है। सियाराम का मंदिर बनता तो अच्छा होता। डॉक्टर करण सिंह ने सरकार को सुझाया था इस मंदिर को सियाराम का मंदिर बनाना चाहिए, जिसमें सीता भी हो और आप भी हो। अगर आप इस मंदिर में रहने लगे तो सीता मैया कहां रहेंगी। क्या वह अकेली रहेगी अपनी कुटिया में या महल में, यह तो कुछ वैसे ही होगा जैसे यशोदा बहन कहीं और रहती हैं और फकीर साहब कहीं और रहते हैं।
राम- लेकिन पवनसुत मैं क्या कर सकता हूं। मैं तो मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का बहिष्कार भी नहीं कर सकता हूं। अगर मैं वहां नहीं गया तो लोग मुझे ही गालियां देंगे। हो सकता है कुछ लोग मेरा घर जला दें। मेरे घर को बुलडोजर से गिरा दें या नहीं तो संभव है ईडी का छापा मेरे घर पर पड़ जाए। इसलिए मैं तो अकेले ही वहां जाऊंगा।
हनुमान- तब तो मुझे भी आपके साथ जाना ही पड़ेगा प्रभु! जैसी आपकी इच्छा, मैं तो बस आपका दास हूं!
(Disclaimer: प्रभु श्रीराम और हनुमानजी के बीच ये काल्पनिक संवाद है)