-विमल कुमार
हनुमान- प्रभु! क्या आपको 22 जनवरी के समारोह के लिए इनवाइट मिल गया?
राम- यह 22 जनवरी को क्या हो रहा है? पहले जरा यह तो बताओ।
हनुमान- अरे प्रभु! आपको यह भी नहीं मालूम कि आपकी प्राण प्रतिष्ठा हो रही है।
राम- अरे मैं तो अभी जीवित हूं तो मेरी प्राण प्रतिष्ठा का क्या मतलब?
हनुमान- अरे प्रभु !आपका मंदिर बन रहा है अयोध्या में जो इतने सालों तक लोगों के लिए एक सपना था। अब आप उस मंदिर में रहेंगे। अब हमारा और आपका रिश्ता खत्म। हम लोग अब सोशल मीडिया पर नहीं रहेंगे बल्कि उस मंदिर में ही रहेंगे ।
राम- लेकिन हनुमान! मुझे तो कोई इनवाइट अभी तक मिला ही नहीं।
हनुमान- तो इसका मतलब आप भी कंगना रनौत की श्रेणी में आ गये। यह दिन भी आपको देखना पड़ा कि आपके ही मंदिर में आपको इनवाइट न मिला।
राम- अरे कोई जुगाड़ लगाओ। कम से कम मुझे इनवाइट तो मिले। मैं भी जाकर देखूं किस तरह मेरी प्राण प्रतिष्ठा हो रही है ।
हनुमान- प्रभु! वहां तो वीआईपी लोग आ रहे हैं। वहां इनवाइट मिलना आसान काम नहीं है, जहां अडानीजी साहब आ रहे हो, अमिताभ बच्चन आ रहे हो, सचिन तेंदुलकर आ रहे हो वहां आपकी और हमारी क्या औकात प्रभु! हम लोग तो वहीं कहीं पेड़ पर लटक कर देखेंगे, किस तरह प्राण प्रतिष्ठा हो रही है।
राम- अरे हनुमान ऐसा ना कहो। मेरी तो इंसल्ट हो जाएगी। देखो पीएमओ में किसी को फोन मिलाओ। अपना कोई न कोई भक्त वहां मिलेगा और वह इनवाइट की व्यवस्था करेगा। या नहीं तो राम जन्म मंदिर न्यास के लोगों से ही बात करो।
हनुमान- प्रभु! हिंदी का एक कवि तो है मेरी जान पहचान का, उसके पिता न्यास में है। मैं पहले उनसे ही बात करता हूं, शायद आपका काम हो जाए। और अगर नहीं हुआ तो पीएमओ में देखता हूं कोई बंदा मिल जाए तो कम से कम आपको तो इनवाइट मिल जाए। मुझे मिले या ना मिले। मैं तो कहीं से प्राण प्रतिष्ठा समारोह देख लूंगा। वैसे मेरे हृदय में तो आपके ही प्राण बसे रहते हैं इसलिए मुझे प्राण प्रतिष्ठा समारोह की क्या जरूरत। लेकिन आपके लिए तो कोई न कोई व्यवस्था मुझे करनी ही पड़ेगी।
राम- धन्यवाद, बहुत-बहुत धन्यवाद पवन सूत। अगर किसी तरह इनवाइट मिल गया तो मैं तुम्हारा आजीवन आभारी रहूंगा।
(Disclaimer: प्रभु श्रीराम और हनुमानजी के बीच ये काल्पनिक संवाद है)