-विमल कुमार
हनुमान- प्रभु! आज तो आपके चेहरे पर चमक आ गयी है। कितना दीप्त हो गया आपका मुखमंडल।अब तो आप बहुत प्रसन्नचित हो गए। कल का दिन आपका बहुत ही शानदार रहा।
राम- हनुमान! मैं तो बहुत ही दुखी हूं।
हनुमान- अरे! आप दुखी क्यों हैं? क्या हुआ आपके साथ?
राम- मैं दूर से ही कंगना रनौत को देखता रहा। माधुरी दीक्षित को देखता रहा। अमिताभ बच्चन को देखता रहा। सचिन तेंदुलकर को देखता रहा। लेकिन कोई भी मुझसे मिलने नहीं आया और न ही मैं उनसे मिल सका।
हनुमान- प्रभु जाने दीजिए ये सिक्योरिटी वाले भी सितम ढाते है। एसपीजी वाले पीएम के सामने किसी को पूछते नहीं। वह कहां किसी को मिलने देते हैं! वह किसी को पास में फ़टकने भी नहीं देते हैं। खैर! जो हुआ सो हुआ। अब तो आप खुश होंगे।
राम- नहीं हनुमान! मैं बहुत व्यथित हूं। अयोध्या में बहुत सारे गरीबों के घर टूटे हैं। आज मैंने उसके फुटेज देखे हैं। मेरे नेत्र सजल हो गए हैं। यह सब अच्छा नहीं हुआ। मैं तो सबका राम हूं। क्या धनवान क्या निर्धन। लेकिन इन बेचारे गरीबों के साथ बहुत ही बुरा हुआ। आखिर क्या जरूरत थी मेरी प्राण प्रतिष्ठा के चक्कर में उन गरीब लोगों का घर उजाड़ने की।
हनुमान- यह सब तो होता ही है संसार में। संसार इसी का नाम है प्रभु! आप तो तीनों लोकों के स्वामी हैं। हर युग में गरीब सताए जाते हैं। अमीरों को कौन सता सकता है। खबर है कि आपकी प्राण प्रतिष्ठा में तो अंबानी जी भी आए और अडानी जी भी आए। टीवी पर उन सब के चेहरे चमक रहे थे। इसलिए मैं आपसे पूछ रहा हूं। अब तो आप खुश हैं?
राम- हनुमान! हर सरकार अगर मेरी प्राण प्रतिष्ठा करती तो ऐसा ही करती। नेहरू जी भी अगर मेरे प्राण प्रतिष्ठा करें तो नरगिस, मधुबाला, वैजयंती माला आतीं। लाला अमरनाथ आते, बीनू मांकड़ आते। बिड़ला आते। टाटा आते। बजाज आते।खैर, मेरा किसी सरकार से क्या लेना देना। मैं किसी पार्टी का सदस्य नहीं हूं। ना ही मुझे चुनाव लड़ना है। मेरी कोई लालसा नहीं है। मैं तो लव कुश को केवल अच्छी सरकारी नौकरी में देखना चाहता हूं।
हनुमान- लेकिन प्रभु नौकरी मिल कहां रही है? देख नहीं रहे कितनी बेरोजगारी बढ़ रही है। महंगाई बढ़ रही है। और ऐसे में 500 करोड़ रुपए खर्च कर आपकी प्राण प्रतिष्ठा हो रही है। प्रभु! आप तो एक शब्द भी नहीं बोले और चुप रहे। अपनी प्राण प्रतिष्ठा होते देखते रहे।
राम- क्या बोलूं हनुमान? बोलते बोलते तो मैं भी थक गया हूं। त्रेता युग से बोल रहा हूं। हर साल रावण का वध करता हूं।वह फिर जन्म लेता है। अब कलयुग आ गया है। कोई मेरी बात सुनता कहां है? अब तो निर्वाचित रावण आ गए हैं। उन्हें मारना बहुत मुश्किल।
(Disclaimer: प्रभु श्रीराम और हनुमानजी के बीच ये काल्पनिक संवाद है)