-विमल कुमार
हनुमान- प्रभु! कल बिहार की घटना से मुझे बहुत डर लग रहा है। पता नहीं मेरा मन नाना तरह की आशंकाओं से भर गया है।
राम- क्यों पवनसुत? इसमें डरने की क्या बात है?
हनुमान- अगर आपकी आज्ञा हो तो प्रभु मैं अपनी आशंका व्यक्त करूं?
राम- करो करो, निडर हो कर करो हनुमान! अपनी आशंका व्यक्त कर सकते हो।
हनुमान- प्रभु कहीं आप भी अपना पाला तो नहीं बदलेंगे?
राम- नहीं हनुमान! ऐसा नहीं हो सकता है। मैं कोई पलटू राम नहीं हूं और मुझे तो कोई चुनाव भी नहीं लड़ना है। इसलिए एनडीए या महागठबन्धन में जाने का सवाल नहीं उठता। तुमको मैंने पहले बता दिया था। हालांकि तुमने कहा था कि तुम मेरे नेतृत्व में चुनाव लड़ना चाहोगे। लेकिन मुझे सबसे दुख इस बात का है कि पलटू राम की बात करते हुए लोग मुझे क्यों घसीट रहे हैं? आखिर केवल पलटू शब्द से ही लोग काम चला सकते थे। उसे पलटू शब्द में राम शब्द क्यों जोड़ रहे हैं? आखिर ऐसे लोगों का राम से क्या लेना देना और राम का पलटुओं से क्या लेना देना? इसलिए मुझे सख्त आपत्ति इस शब्द पर है।
हनुमान- प्रभु! आप भाषा की दृष्टि से सही बोल रहे हैं। लगता है पहले कभी अयोध्या के राम ने कहीं कोई पलटी तो नहीं मारी थी? इसलिए पलटू के साथ राम भी जुड़ गया।
राम- हनुमान! ऐसा इतिहास में कभी नहीं हुआ है। अगर ऐसा होता तो बाल्मिकी या तुलसीदास जरूर लिखते। लेकिन उन लोगों ने कभी राम के चरित्र का वर्णन करते हुए उनके पलटने की बात कहीं नहीं लिखी है। इसलिए मैं समझता हूं कि पलटू राम शब्द ही आपत्तिजनक है।
हनुमान- आप ठीक कर रहे हैं प्रभु! शब्दों की पीछे भी एक तरह का पूर्वाग्रह काम करता है और एक तरह की हिंसा भी काम करती है। नीतीश कुमार ने इस शब्द को भी घृणित बना दिया। मैं अबसे से नीतीश कुमार को केवल पलटू कहूंगा।
राम- पलटू बाबू कहकर रेणु के उपन्यास पलटू बाबू रोड की याद दिला दी। खैर! तुम आश्वस्त रहो। मैं कहीं नहीं जाने वाला हूं। मैं तो अयोध्या में ही रहूंगा इस मंदिर में जहां मेरी प्राण प्रतिष्ठा हुई है।
हनुमान- लेकिन प्रभु! भारतीय राजनीति में तो अब नीतीश कुमार की प्राण प्रतिष्ठा फिर से हुई है और वह नवीं बार मुख्यमंत्री बने हैं। एक गिनीज बुक रिकार्ड बना है।
राम- यह तो वक्त ही बताएगा हनुमान! किसकी प्राण प्रतिष्ठा हुई है और किसके प्राण पखेरू इस चुनाव में उड़ेंगे।
(Disclaimer: प्रभु श्रीराम और हनुमानजी के बीच ये काल्पनिक संवाद है)