देश के पूर्व उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी का मानना है कि हाल के वर्षों में ऐसी प्रवृत्तियां बढ़ी हैं जो नागरिकों को उनके धर्म के आधार पर अलग करना चाहती हैं। साथ ही ऐसी प्रवृतियां असहिष्णुता, अशांति व असुरक्षा को बढ़ावा देती हैं। हामिद अंसारी ने ये बात एक डिजिटल चर्चा में देश में बढ़ती सांप्रदायिकता पर चिंता जताते हुए कही। इस चर्चा में कई अमेरिकी सांसदों ने भी हिस्सा लिया। इस डिजिटल परिचर्चा का आयोजन वाशिंगटन में इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल ने किया था।
इस चर्चा में हामिद अंसारी ने कहा, ‘हाल के वर्षों में हमने उन प्रवृत्तियों और प्रथाओं के उद्भव का अनुभव किया है, जो नागरिक राष्ट्रवाद के सुस्थापित सिद्धांत को लेकर विवाद खड़ा करती हैं और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की एक नई एवं काल्पनिक प्रवृति को बढ़ावा देती हैं।’ वहीं अमेरिकी डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसद एड मार्के ने कहा, ‘एक ऐसा माहौल बना है, जहां भेदभाव और हिंसा जड़ पकड़ सकती है। हाल के वर्षों में हमने ऑनलाइन नफरत भरे भाषणों और नफरती कृत्यों में वृद्धि देखी है। इनमें मस्जिदों में तोड़फोड़, गिरजाघरों को जलाना और सांप्रदायिक हिंसा भी शामिल है।’
अमेरिकी सांसद रस्किन ने चर्चा में कहा,’भारत में धार्मिक अधिनायकवाद और भेदभाव के मुद्दे पर बहुत सारी समस्याएं हैं इसलिए हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि भारत हर किसी के लिए स्वतंत्रता व धार्मिक स्वतंत्रता, बहुलवाद, सहिष्णुता और असहमति का सम्मान करने की राह पर बना रहे।’
वहीं एक दूसरे सांसद एंडी लेविन ने कहा, ‘अफसोस की बात है कि आज दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र पतन, मानवाधिकारों का हनन और धार्मिक राष्ट्रवाद को उभरते देख रहा है। 2014 के बाद से भारत लोकतंत्र सूचकांक में 27 से गिरकर 53 पर आ गया है और ‘फ्रीडम हाउस’ ने भारत को ‘स्वतंत्र’ से ‘आंशिक रूप से स्वतंत्र’ श्रेणी में डाल दिया है।’
भारत सरकार ने देश में मानवाधिकारों को लेकर पूर्व उपराष्ट्रपति और अमेरिकी सांसदों की चिंता को खारिज करते हुए कहा कि ‘भारत में सभी के अधिकारों की रक्षा के लिए सुस्थापित लोकतांत्रिक प्रथाएं और मजबूत संस्थान हैं। साथ ही भारतीय संविधान मानवाधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने हेतु विभिन्न कानूनों के तहत पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करता है।’