छत्तीसगढ़ में होने वाले पहले दौर के चुनाव में सबकी निगाहें बस्तर-दुर्ग संभाग की 20 सीटों पर टिकी हुईं हैं। छत्तीसगढ़ में ऐसा माना जाता है कि यहां सत्ता की चाबी बस्तर-दुर्ग से ही आती है। इसीलिए 90 सीटों वाली विधानसभा तक पहुंचने के लिए कांग्रेस और बीजेपी में जमकर संघर्ष हो रहा है। आज पहले दौर के मतदान में बस्तर संभाग की सभी 12 और दुर्ग संभाग की 8 विधानसभा सीटों के लिए वोट डाले जा रहे हैं।
नक्सल प्रभावित बस्तर में चुनाव कराना हमेशा से मुश्किल रहा है। क्योंकि बस्तर के इलाकों में भले ही नक्सलियों और माओवादियों का प्रभाव कम हुआ हो, लेकिन ये इलाका अभी भी बेहद संवेदनशील माना जाता है। यहां वोटिंग के लिए डीआरजी, एसटीएफ, बस्तर फाइटर्स, कोबरा जैसे स्पेशल फोर्स को लगाया गया है। जिनके साथ सीआरपीएफ और आईटीबीपी के जवान भी स्वच्छ और निष्पक्ष चुनाव के लिए मोर्चा संभाले हुए हैं।
बस्तर और दुर्ग संभाग की 20 सीटों पर कांग्रेस को 2018 के चुनाव में बड़ी
कामयाबी मिली थी। कांग्रेस ने बस्तर की सभी 12 सीटों पर जीत हासिल कर इस क्षेत्र में अपना अच्छा खासा प्रभाव रखने वाली बीजेपी को धूल चटा दी थी। लेकिन इस बार बस्तर में बीजेपी 3-4 सीटों पर मुकाबले में नजर आ रही है। बस्तर क्षेत्र की जगदलपुर और अंतागढ़ में बीजेपी बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर रही है तो कांकेर, नारायणपुर में वो मुकाबले में नजर आ रही है।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के प्रचार की कमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ही थाम रखी है। कांग्रेस ने अपने ताजा घोषणा-पत्र में हर वर्ग के मतदाताओं को साधने की कोशिश की है। सीएम बघेल अपने शासन की उपलब्धियों को गिनाकर जनता से वोट भी मांगा हैं। हालांकि कांग्रेस के स्टार प्रचारक राहुल और प्रियंका गांधी ने भी पार्टी की जीत को दोहराने के लिए जमकर पसीना बहाया है। बीजेपी के प्रचार की कमान मोटे तौर पर मोदी और उनकी दिल्ली वाली टीम के हाथों में रही है। पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह उनके पीछे खड़े दिखाई दे रहे हैं।
यहां बीजेपी की सबसे बड़ी कमजोरी ये नजर रही है कि उसने तीन बार छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रहे रमन सिंह को चेहरा नहीं बनाया है। रमन सिंह राजनांदगांव से चुनाव लड़ रहे हैं और आज उनके भाग्य का भी फैसला होना है। बीजेपी यहां मोदीजी की गारंटी के नाम पर ही चुनाव लड़ रही है। जिसे लेकर लोगों में चर्चा तो है लेकिन उत्साह कम ही नजर आता है। मोदी की गारंटी को यहां के लोग शक की निगाहों से देखते हैं।
दरअसल यहां मोदीजी की गारंटी पर कांग्रेस का ताजा घोषणा पत्र भारी दिखाई दे रहा है। यहां के आम लोगों में खासकर किसानों में कांग्रेस के धान के एमएसपी को बढ़ाकर 3200 रुपए किए जाने की खूब चर्चा हो रही है। इससे भी बड़ी बात ये है कि लोग भूपेश बघेल की बातों पर भरोसा करते दिखाई दे रहे हैं। यहां लोगों में आम धारणा है कि बघेल जो कहते हैं सो करते हैं, जबकि मोदीजी बात-बात में झूठ बोलते हैं। सवाल करने पर लोग 15-15 लाख मिलने का उदाहरण झट से दे देते हैं।
यहां के लोगों का कहना है कि भूपेश बघेल सरकार ने छत्तीसगढ़ में पेसा कानून को मंजूरी दी है। जिसे कांग्रेस ने अपने 2018 के घोषणा पत्र में शामिल किया था। इस कानून का छत्तीसगढ़ में बड़ा राजनीतिक महत्व है। पैसा कानून यानी जल, जगल और जमीन पर आदिवासियों के हक। आदिवासियों के दबदबे वाले इस कानून के लागू होने का असर सरगुजा, रायगढ़, बस्तर और कांकेर में देखा जा सकता है। क्योंकि इस कानून के लागू होने के बाद आदिवासियों को उनके अधिकार और हक मिल गए हैं। यहां के आदिवासियों का कहना है कि “कांग्रेस कम से कम हमें इंसान तो मानती है जबकि बीजेपी वाले तो हमें वनवासी बोलकर जानवर करार दे देते हैं।“
दरअसल बस्तर संभाग में बीजेपी के सामने कई रोड़े हैं। एक तो वो चुनावी वादों में वो कांग्रेस से पिछड़ गई है, वहीं पार्टी को नाराज और बागी नेताओं से भी निपटना पड़ रहा है। जिसका असर जगदलपुर, सुकमा (कोंटा), दंतेवाड़ा, चित्रकोट में देखा जा सकता है। BJP के एक प्रत्याशी के एक वायरल ऑडियो से भी यहां नाराजगी देखी जा रही है, जिसमें एक युवक को जातिगत गालियां दी जा रही है। इस ऑडियों के सामने आने से आदिवासी समाज के लोग काफी नाराजगी नजर रहे हैं। बस्तर से बीजेपी ने आठ नए चेहरे मैदान में उतारे हैं। जिससे पार्टी के अंदर विद्रोह की स्थिति है।
2018 के चुनाव में मुंह की खाई बीजेपी ने 2023 के चुनाव से पहले बस्तर-दुर्ग संभाग में एक बार फिर से आदिवासियों के बीच पैठ बनाने की
कोशिश की है। बीजेपी का दावा है कि केंद्र में मोदी सरकार के चलते ही माओवादी हिंसा थमी है। बस्तर में बीजेपी धर्मांतरण को भी मुद्दा बनाने की कोशिश की है ताकि अपनी कमी पाटी जा सके। लेकिन सांप्रदायिक मुद्दे यहां टॉय-टॉय फिस्स होते नजर आ रहे हैं।.बस्तर संभाग अभी कांग्रेस का गढ़ है और यहां की सभी 12 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है। कांग्रेस बीजेपी के काट में देवगुड़ी और मातागुड़ी बनाने का मुद्दा लेकर जनता के सामने गई है। वैसे शराब की बिक्री पर नियंत्रण और स्वच्छ पेयजल की कमी भी इस क्षेत्र में एक बड़ा चुनावी मुद्दा है।
छत्तीसगढ़ में अगर थर्ड फ्रंड की बात करें तो बसपा और गौंडवाना गणतंत्र पार्टी ने गठबंधन किया है। बसपा का आधार छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाकों में है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का आधार आदिवासी इलाके है। बसपा इस बार 5द से ज्यादा और गौंडवाना गणतंत्र पार्टी 37 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। दोनों ने जल, जंगल और जमीन को ही मुद्दा बनाया है। बीते चुनाव में बीएसपी ने अमित जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ से गठबंधन कर जांजगीर और पामगढ़ समेत 7 सीटें जीती थी। बीएसपी को 2018 के चुनाव में 3.87 मत मिले थे। लेकिन इस बार दोनों को यहां के लोग ‘बीजेपी की बी टीम’ करार दे दिया है और दोनों की संभावना बेहद कमजोर नजर आ रही है। ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि कांटे की टक्कर में यहां की जनता किसके हक में अपना फैसला सुनाती है।
(रिसर्च इनपुट रिज़वान रहमान)