पंजाब कांग्रेस में बीते एक साल से जारी रस्साकशी के बीच उसकी जीत पर पहले ही ग्रहण लगे थे। रही सही कसर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने चुनाव के ठीक पहले मुख्यमंत्री पद के चेहरे चरणजीत सिंह चन्नी पर आरोपों की बौछार कर पूरी कर दी। दरअसल सिद्धू चाहते थे कि पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी उन्हें पंजाब का चेहरा बनाएं लेकिन राहुल गांधी ने रायशुमारी से फैसला लेते हुए सिद्धू की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। लिहाज सिद्धू ने भी तय कर लिया कि, ‘हम तो डूबे हैं सनम, तुमको भी ले डूबेंगे।’ और हुआ भी वही, जिसकी आशंका थी। कांग्रेस महज 117 सीटों में से महज 18 सीटों पर निपट गई। वहीं आम आदमी पार्टी ने 92 सीटों पर जीत दर्ज कर कांग्रेस की उम्मीदों पर झाड़ू फेर दिया।
दरअसल विधानसभा चुनावों से पहले पंजाब में कांग्रेस को सत्ता में वापसी की उम्मीद नजर आ रही थी। किसान आंदोलन के चलते बीजेपी और अकाली दल का मजबूत गठबंधन टूट चुका था। वहीं आम आदमी पार्टी की पंजाब के सभी क्षेत्रों में पैठ नजर नहीं आ रही थी। किसान आंदोलन को कांग्रेस पार्टी के खुले समर्थन से भी वापसी की उम्मीद बढ़ गई थी। तभी नवजोत सिंह सिद्धू ने तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के खिलाफ आलाकमान के कान भरने शुरू कर दिए। सिद्धू के इस कदम को लेकर कांग्रेस आलाकमान को सख्त रूख अख्तियार करते हुए उन्हें बाहर का रास्ता दिखाना चाहिए था। लेकिन अमरिंदर सिह की चौधराहट से पहले से खफा आलाकमान ने नफा-नुकसान तय करने में काफी वक्त लगा दिया।
पंजाब और दिल्ली के बीच कांग्रेसियों की लगातार चहलकदमी के बाद अमरिंदर सिंह को तो जाना पड़ा लेकिन सिद्धू खुद को मुख्यमंत्री बनवाने में नाकाम रहे। कांग्रेस ने एक दलित चेहरे चरणजीत सिंह चन्नी को बतौर मुख्यमंत्री अवसर दिया। जो सिद्धू को कतई रास नहीं आया। चन्नी साहब के 111 दिन के कार्यकाल में कोई ऐसा दिन नहीं था जब सिद्धू ने उनके लिए मुश्किलें खड़ी ना की हो या ऐसा करते ना दिखे हों। नवजोत सिंह सिद्धू ने अपनी ही कांग्रेस सरकार के 5 साल के प्रदर्शन और चरणजीत सिंह चन्नी की काबिलियत पर इतने आरोप लगाए, जितने आम आदमी पार्टी ने भी नहीं लगाए होंगे। उधर पंजाब के कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बीजेपी से हाथ मिलाकर कांग्रेस की रही सही संभावनाओं पर भी पानी फेर डाला।
जब चुनाव के ठीक पहले राहुल गांधी ने सिद्धू के सामने ही चन्नी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया तभी ये साफ हो गया था कि कांग्रेस की बड़ी हार होने जा रही है। क्योंकि मंच पर भले ही सिद्धू ने राहुल गांधी के इस फैसले को मानने की बात की हो, लेकिन वो अंदर से जल-भून गए थे। और इसके 48 घंटे के भीतर ही सिद्धू ही नहीं, उनकी पत्नी और बेटी ने भी चन्नी साहब और उनके परिवार पर सैंड माफिया से लेकर बड़े-बड़े घोटालेबाजों के साथ सांठगांठ कर करोड़ों की संपत्ति अर्जित करने के आरोप लगा दिए। इतना ही नहीं सिद्धू ने इशारों-इशारों में पंजाब के लोगों को आम आदमी पार्टी के पक्ष में वोट देने का आह्वान भी कर डाला।
सबको मालूम है कि सिद्धू कांग्रेस में आने से पहले आम आदमी पार्टी में जाना चाहते थे। लेकिन अरविंद केजरीवाल सिद्धू को लेने को तो तैयार थे, लेकिन मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने को तैयार नहीं थे। लिहाजा हर बार मामला अटक गया। वैसे सिद्धू का बैकग्राउंड बीजेपी का ही रहा है। और ऐसा माना जाता है कि वो कांग्रेस में रहकर बीजेपी के हिडन एजेंडे को ही आगे बढ़ाने का काम करते नजर आ रहे थे। चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद भी उनका जो बयान सामने आया है उसमें हार को लेकर कोई कचोट का भाव नजर नहीं आना भी हैरान करने वाला ही है।
तो सवाल ये कि पंजाब के लोगों के पास विकल्प क्या था? पंजाब के लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान से खासे खफा थे कि, ‘मैं पंजाब से जिंदा लौट आया।’ तीन काले कृषि कानूनों को लेकर उनकी नाराजगी अकाली दल से भी थी। बीएसपी पंजाब में कभी सरकार बनाने की हालत में नहीं थी। और कांग्रेस के अंदर कुर्सी को लेकर घमासान की स्थिति बनी हुई थी। ऐसे में पंजाब में 2017 के चुनाव में अपनी पैर जमा चुकी आम आदमी पार्टी के पास बेहतर अवसर थे और उन्होंने इसका जमकर फायदा उठाया। वो विकास और मुफ्तखोरी के कथित सकारात्मक एजेंडे के साथ जनता के बीच गए और जनता ने भी उन्हें सिर आंखों पर बिठा लिया।
दिल्ली के सरकारी विज्ञापनों की उन्होंने पंजाब के अखबारों और टीवी चैनलों में झड़ी सी लगा दी। सूबे का खजाना खाली होने के बाद भी आसमान से तारे तोड़कर वोटरों की झोली में डालने का वादा कर डाला। नतीजा सबके सामने हैं। वोटर पंजाब के परंपरागत राजनीतिक दलों में जारी इस अंदरूनी कलह और उटापटक से पहले ही आजीज आ चुके थे। और उनके सामने एक विकल्प था। जो उन्हें एक सुंदर भविष्य के सपने दिखा रहा था। वो उनके सामने दिल्ली का एक ऐसा मॉडल पेश कर रहा था, जिनके बारे में उन्हें पढ़ा या सुना था। उन्हें इसकी ज्यादा जानकारी नहीं थी। लिहाजा उन्होंने परंपरागत पार्टियों को दरकिनार करते हुए एक नई पार्टी, ‘आम आदमी पार्टी’ को आजमाने का फैसला कर डाला।