उत्तर प्रदेश में बीजेपी जीत भले ही गई हो लेकिन क्या ये जीत कहीं से करिश्माई है? क्या इस जीत में कोई मोदी मैजिक है। या फिर ये हमारे लोकतंत्र और चुनाव प्रणाली की त्रासदी है कि 24 करोड़ आबादी वाले प्रदेश में 4 करोड़ से भी कम वोट लाकर एक पार्टी अपने को अजेय साबित करने पर आमादा नजर आ रही है। अगर हम टोटल वोट पोल्ड यानी कुल मतदान की भी बात भी करें तो बीजेपी को 9 करोड़ 20 वोटों में से महज 3 करोड़ 80 लाख वोट ही हासिल हुए हैं। इसे अगर हम राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो देश की 140 करोड़ की आबादी में से 91 करोड़ मतदाताओं का ये महज 5 फीसदी वोटों के आसपास ही बैठता है। फिर भी गोदी मीडिया इस कामयाबी को मोदी मैजिक साबित करने पर आमादा है। इस साधारण सी जीत को ऐतिहासिक बताने की कवायद में दिनरात लगा है। ताकि जीत की कलई ना खुल जाए।
अगर हम आंकड़ों पर नजर डालें तो उत्तर प्रदेश की 403 सीटों पर सभी 7 चरणों में औसत 60.8 फीसदी वोट डाले गए हैं। और प्रदेश के कुल 15 करोड़ 5 लाख वोटरों में से करीब 9 करोड़ 20 लाख वोटरों ने मतदान में हिस्सा लिया। इनमें से बीजेपी के खाते में 41.3 फीसदी वोट यानी 3 करोड़ 80 लाख वोट आए हैं। वहीं समजावादी पार्टी के खाते में 2 करोड़ 95 लाख वोट आए हैं। यानी बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच वोटों का अंतर करीब 85 लाख का ही रहा है। लेकिन सीटों के मामले में बीजेपी को समाजवादी पार्टी के 111 सीटों के मुकाबले 255 सीटों पर कामयाबी मिली। बीते 2017 के चुनाव नतीजों से अगर इसकी तुलना करें तो जहां 2022 के चुनाव में बीजेपी को 57 सीटों का नुकसान हुआ है, वहीं समजवादी पार्टी को 64 सीटों का फायदा हुआ है। जो बीजेपी के लिए खुशी से ज्यादा चिंता की बात है। क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव अभी दिसंबर 2022 में होने हैं।
बीजेपी को 2017 के उत्तर प्रदेश के चुनाव में अपने बूते 312 सीटें मिलीं थीं। जबकि समाजवादी पार्टी को महज 47 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। हालांकि बीजेपी को 2017 के चुनाव के मुकाबले इस बार वोटों में 1 फीसदी से ज्यादा का फायदा हुआ है, वहीं समजावादी पार्टी ने भी 11 फीसदी वोटों की बढ़त दर्ज की है। यानी 2022 के चुनाव में बीजेपी का ग्राफ चढ़ा नहीं है बल्कि सीटों के मामले में वो गिरता हुआ ही दिखाई दे रहा है। वो भी तब, जबकि मोदी-योगी की जोड़ी के साथ केंद्रीय कैबिनेट के लगभग सभी मंत्री दो महीने तक उत्तर प्रदेश के चुनाव मैदान में डेरा डाले थे।
वहीं, समाजवादी पार्टी गठबंधन की कमान अखिलेश यादव, जयंत चौधरी के अलावा कुछ छोटे दलों के नेताओं के हाथ में थी। साथ ही हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि बीजेपी के पक्ष में दूरदर्शन समेत पूरा का पूरा सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और न्यूज चैनल्स बिछे हुए थे। वो 24 घंटे चारण-भाट की तरह न केवल मोदी-योगी का गुणगान कर रहे थे बल्कि उनकी विजय की कामना करते नजर आ रहे थे। इस चुनाव में बीजेपी को जो कामयाबी मिली है उसमें मीडिया की ताकत का भी बड़ा हाथ रहा है। जिसने बीजेपी के पक्ष में नैरेटिव गढ़ने का काम बाखूबी किया है।
उधर, मोदीजी उत्तर प्रदेश चुनाव नतीजों को लेकर इतने आशंकित थे कि उन्होंने कई बार वाराणसी के चक्कर लगा डाले। और इतने से भी जी नहीं भरा तो सातवें चरण से पहले वाराणसी में डेरा ही डाल दिया। इसके बावजूद सातवें चरण की 54 सीटों में से 27 सीटों पर यानी आधी सीटों पर समाजवादी पार्टी गठबंधन ने कब्जा जमाया। इस दौर में नतीजों के हिसाब से बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी। यही वजह है कि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी अपनी कामयाबी में आई इस भारी गिरावट को बड़ी जीत के रूप में प्रोजेक्ट करने में लगी है। साथ ही पूरे गोदी मीडिया को इस काम में झोंक दिया गया है। ताकि मोदी मैजिक की घटती चमक पर बात ना हो पाए और लोग मोदी-योगी को अजेय मानने की गलती करते रहे।
अब बात करते हैं लार्जर पिक्चर की। तमाम संसाधन झोंकने और चुनाव आयोग के बेशर्म समर्थन के बाद भी मोदी-योगी की कामयाबी कितनी बड़ी है। अगर हम इसे देश के पैमाने पर देखें तो इसके असली कद का पता चलता है। आप इसे ऐसे समझ सकते हैं। 140 करोड़ की आबादी और 92 करोड़ मतदाताओं वाले देश में मोदी-योगी की जोड़ी उत्तर प्रदेश के 9 करोड़ 20 लाख वोटों मे से महज 3 करोड़ 80 लाख वोट लाकर खुद को तीसमारखां साबित करने में लगे हैं। जबकि ये किसी मोदी मैजिक या फिर किसी के करिश्माई छवि से ज्यादा आंकड़ों का गणित है। और इनमें थोड़ा भी हेरफेर किसी भी वक्त मोदीजी और योगीजी का खेल बिगाड़ सकता था।