उत्तर प्रदेश में चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहे हैं, राजनीति रोज नए करवट ले रही है। एनडीए से कई पिछड़े नेताओं के छिटक कर समाजवादी पार्टी से हाथ मिलाने के बाद बीजेपी की चिंता बढ़ गई है। एनडीए के बचे घटक अपना दल और निषाद पार्टी के साथ भी गठबंधन का एलान तो हो गया है लेकिन सीटों को लेकर खिचखिच जारी है। ऊपर से अनुप्रिया पटेल ने ये कहकर बीजेपी को आईना दिखाने का काम किया है कि दोनों साथ-साथ तो चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन दोनों दलों की विचारधारा बिल्कुल अलग है। हम केवल विकास और सामाजिक न्याय के मुद्दे पर ही बीजेपी के साथ हैं।
एनडीटीवी को दिए एक खास इंटरव्यू में अनुप्रिया पटेल ने कहा कि मुसलमान हमारे लिए अछूत नहीं हैं। हमारी पार्टी को उनसे कोई परहेज नहीं हैं। हमारी पार्टी से जीतने वाले पहले विधायक मुस्लिम थे। उन्होंने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया ओमप्रकाश राजभर की राजनीतिक ताकत को कबूल करते हुए उन्हें फिर से एनडीए में आने का न्यौता तक दे डाला। दरअसल कल तक एनडीए में हाशिए पर रहने वाले ‘अपना दल’ और ‘निषाद पार्टी’ की आज जो हैसियत बढ़ी है उसकी बड़ी वजह ओपी राजभर और स्वामी प्रसाद मौर्य ही हैं। जाहिर है अनुप्रिया पटेल की ये बातें बीजेपी को नागवार ही गुजरी होगी।
दरअसल अपना दल और निषाद पार्टी का वोट बैंक गरीब, शोषित और वंचित तबके से आता है। जिसमें बड़ी संख्या में मुसलमान भी शामिल रहे हैं। तो क्या अनुप्रिया पटेल ने बीजेपी की विचारधारा से किनाराकशी कर चुनाव बाद नए रास्ते तलाशने के संकेत दे रहीं हैं? क्योंकि अपना दल और निषाद पार्टी को लेकर बीजेपी के भीतर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। वो साथ-साथ होकर भी अलग नजर आ रहे हैं। सीटों को लेकर मामला तय ना हो पाने में इसकी झलक देखी जा सकती है।
बीजेपी को लगता है कि अगर इन दलो को 35-40 सीट अपने सिंबल पर लड़ने के लिए दे दिए तो चुनाव बाद ये आसानी से पाला भी बदल सकते हैं। लिहाजा पिछड़े, दलित, शोषित और जाट वोटों को साधने की कोशिश तो बीजेपी कर रही है लेकिन कदम फूंक-फूंक कर बढ़ा रही है। क्योंकि बीजेपी को लगता है कि चुनाव बाद उन्हें कुछ सहयोगियों की फिर से जरूरत पड़ सकती है। इसीलिए कभी अमित शाह आरएलडी के अध्यक्ष जयंत चौधरी को तो अनुप्रिया पटेल औम प्रकाश राजभर को न्यौता देती नजर आ रही हैं। ताकि आवागमन का पुल टूटने ना पाए। और पुल को बचाने का जिम्मा सबने उठा रखा है। अनुप्रिया पटेल और संजय निषाद ने भी।