Sunday, December 15, 2024
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सुरक्षा चूक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को लगाई फटकार, अब कोर्ट की समिति करेगी मामले की जांच

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पंजाब के फिरोजपुर यात्रा के दौरान हुई सुरक्षा चूक की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के ही एक रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में समिति का गठन किया। इस जांच समिति में पंजाब के आला अधिकारियों को भी शामिल किया गया है।
मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने आज इस मामले की विस्तृत सुनवाई की। इस दौरान बेंच में शामिल जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हेमा कोहली ने केंद्र सरकार को पंजाब सरकार के अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस देने के लिए फटकार लगाई।
आज इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में कराए जाने की अपील करते हुए पंजाब सरकार के एडवोकेट जनरल ने कोर्ट को बताया कि केंद्र सरकार की समिति ने राज्य में पुलिस एवं अन्य अधिकारियों को बिना सुनवाई के ही सात कारण बताओ नोटिस जारी कर दिए हैं। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षा चूक मामले में किसी कार्रवाई पर रोक लगा रखी है।
उन्होंने कहा कि पंजाब के अधिकारियों को केंद्र सरकार की समिति से न्याय नहीं मिलेगा। लिहाजा निष्पक्ष सुनवाई के लिए अदालत को स्वतंत्र जांच का निर्देश देना चाहिए। वहीं, अदालत में केंद्र सरकार की और से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी दलीलों के दौरान एसपीजी की ब्लू बुक का हवाला दिया और पंजाब सरकार के अधिकारियों को सुरक्षा चूक में कसूरवार ठहराने की कोशिश की। लेकिन कोर्ट ने उनकी सभी दलीलों को खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र की ओर से बिठाई गई जांच समिति पर भी कई सवाल उठाए। जस्टिस कोहली ने कहा, ‘कारण बताओ नोटिस जारी करके आप पहले ही नतीजे पर पहुंच गए हैं तो फिर किसी जांच की क्या जरूरत रह गई है?’ वहीं जस्टिस सूर्यकांत ने केंद्र सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, “आपका कारण बताओ नोटिस पूरी तरह से विरोधाभासी है। जांच समिति का गठन कर आप क्या साबित करना चाहते हैं? आप एसपीजी अधिनियम के उल्लंघन की जांच भी करना चाहते हैं और फिर राज्य के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को दोषी भी मानते हैं। उन्हें किसने दोषी ठहराया है?”
इस मामले की पिछली सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रमना ने इस मामले की जांच पर रोक लगाते हुए कहा था कि अगर आप राज्य सरकार के अधिकारियों के खिलाफ एकतरफा अनुशासनात्मक कार्रवाई करना चाहते हैं, तो इस न्यायालय को क्या करना बाकी रह गया है?

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