- संजय कुमार
पंजाब में 14 फरवरी को होनेवाले चुनावों से पहले बीजेपी प्रधानमंत्री मोदी की सुरक्षा को लेकर जिस तरह बवाल मचा रही है उसने पंजाब के वोटरों को पार्टी से और दूर ही किया है। हालांकि पंजाब में बीजेपी अपने दम पर कभी मजबूत नहीं रही है। उसे इस सूबे में हरवक्त एक बैसाखी की तलाश रही है। इसीलिए बीजेपी ने अकाली दल का साथ छूटने के बाद बड़े बेआबरू होकर कांग्रेस के कूचे से बाहर निकले कैप्टन अमरिंदर सिंह का हाथ थामा है। लेकिन हवा में लटके अमरिंदर सिंह के सहारे बीजेपी का कुछ भला होता दिखाई नहीं दे रहा। उल्टे बीजेपी के कार्यकर्ता नाराज हो गए हैं जो बीते साढ़े चार साल से ज्यादा से अमरिंदर सिंह के खिलाफ मोर्चा खोले बैठे थे। उन्हें चुनाव के मौके पर अब अमरिंदर सिंह जिंदाबाद के नारे लगाना भारी पड़ रहा है। रही सही कसर मोदीजी ने पंजाब में अपनी जान को खतरा बताकर पूरी कर दी है।
पंजाब में बीजेपी बीते 23 साल से अकाली दल के साथ एक जूनियर पार्टनर की भूमिका में ही रही है। 2017 के चुनाव में बीजेपी पंजाब की 117 सीटों में से 23 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और उसे महज 3 सीटों पर कामयाबी हासिल हुई। अगर वोट प्रतिशत की बात करें तो उन्हें 5.4 फीसदी वोट मिले थे। वहीें 2012 के चुनाव में अकाली दल के साथ लड़ते हुए बीजेपी को अपने कोटे की 23 सीटों में से 12 सीटें मिलीं थीं और वोटों का प्रतिशत 7.18 रहा था। यानी बीजेपी पंजाब में चुनाव दर चुनाव फिसलती रही है। बीजेपी को सबसे बड़ा झटका तब लगा था जब 2014 के कथित मोदी लहर में भी उनके कद्दावर नेता अरुण जेटली अमृतसर से चुनाव हार गए थे।
इसबार भी एक साल चले किसान आंदोलन को देखते हुए बीजेपी को पंजाब में किसी चमत्कारिक प्रदर्शन की उम्मीद नहीं रही होगी। खासकर तब, जब किसानों पर जबरन लादे गए तीन कृषि कानूनों के बाद अकाली दल ने चुनाव से ठीक पहले उन्हें धक्का मारकर गाड़ी से उतार
दिया। मोदीजी को तीन काले कृषि कानूनों को अचानक वापिस लेने के बाद उम्मीद थी कि शायद अकाली दल फिर साथ आ जाए, मगर ऐसा हो ना सका। दरअसल तीन कृषि कानूनों को लेकर किसानों की नाराजगी का अंदाजा अकाली दल को है और वो अपनी राजनीतिक जमीन बचाने के लिए बीजेपी के साथ किसी सूरत में नहीं जाना चाहते। उन्हें पता है कि मोदीजी चाहे जो कहें, 700 किसानों की मौत का भूत चुनाव में बीजेपी का पीछा नहीं छोड़ने जा रहा है।
ऐसा नहीं कि बीजेपी को किसानों की नाराजगी का अंदाजा नहीं रहा होगा। लेकिन पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह का साथ मिलने के बाद मोदीजी का हौसला बढ़ गया और उन्होंने फिरोजपुर में एक बड़ी चुनावी रैली के आयोजन का दुस्साहसपूर्ण फैसला ले लिया। मोदीजी को यकीन था कि जब वो पंजाब के लिए 47 हजार करोड़ रुपए की सौगात की बात करेंगे तो पंजाब की जनता और किसान पलक पांवड़े बिछाकर उनके स्वागत में लगाई गई करीब 7
0 हजार कुर्सियों की शोभा बढ़ाएंगे। लेकिन ऐसा ना तो होना था और ना ही हुआ। चापलूसों और चाटुकारों से घिरे मोदीजी का निजी सूचना तंत्र भी कितना कमजोर हो चुका है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि सभास्थल पर भारी बारिश और 90 फीसदी कुर्सियां खाली रहने के बावजूद रैली के असफल होने की सूचना उनतक नहीं पहुंचाई गई। और फिर वही हुआ जिसकी उम्मीद थी। अंतिम समय में सुरक्षा में हुई चूक का ऐसा बवंडर खड़ा किया जिसने भारत जैसे मजबूत देश के एक ताकतवर प्रधानमंत्री को देश-दुनिया के सामने बिल्कुल पिलपिला साबित कर दिया।
अगर मोदीजी चाटुकारों और षड्यंत्रकारियों से ना घिरे होते तो भारी बारिश का बहाना बनाकर चुपचाप पतली गली से खिसक लेते और फिर से तैयारी कर पंजाब जाते। लेकिन कहते हैं ना जब दिमाग में तानाशाही घर कर जाती है तो इंसान विवेकशून्य हो जाता है। रही सही कसर मोदीजी के रास्ते में बैठे किसानों ने पूरी कर दी।
मोदीजी के पास एक और मौका था जब वो रैली की विफलता के बाद भी हीरो बन सकते थे। उन्हें बस सड़क पर बैठे किसानों के बीच जाकर उन्हें भरोसा देना था कि हम आपकी बात सुनेंगे। आपकी बात मानेंगे। आपका दुख-दर्द दूर करेंगे। किसान आंदोलन में शहीद हुए 700 किसानों के परिवारवालों के लिेए दिलासा के दो शब्द बोलने थे, उन्हें गले लगाना था। ताकि जो नुकसान हुआ उसकी थोड़ी-बहुत भरपाई हो सके। लेकिन ये तभी संभव था जब उनमें सत्ता को लेकर घमंड नहीं होता। तो क्या मोदीजी से बड़ी चूक हो गई है? अभी पंजाब में चुनाव होना है। ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि मोदीजी आनेवाले दिनों में कौन सा चेहरा लेकर और कौन से नए नुस्खे के साथ पंजाब में चुनाव प्रचार के लिए जाते हैं।