-विमल कुमार
हनुमान- प्रभु! दिग्विजय सिंह ने आपके बारे में क्या कह दिया है, आपको मालूम है?
राम- नहीं तो? ये दिग्विजय सिंह अमृता राय वाले? क्या कहा? मेरे बारे में? जरा बताओ तो सही।
हनुमान- उन्होंने कहा है कि अयोध्या में जो आपकी प्राण प्रतिष्ठा हो रही है वह राम लला की ओरिजिनल मूर्ति नहीं है।
राम- हनुमान! इस संसार में कोई ओरिजिनल नहीं हैं। ओरिजिनल केवल प्रभु हैं। हम तो उनके अवतार हैं। दिग्विजय सिंह भी अवतार हैं। खैर। मौलिकता की बहस बहुत पुरानी है। मौलिकता कुछ होती नहीं है। संसार में सब कुछ सम्मिश्रित है। जो नया है वह भी किसी परंपरा का हिस्सा है। इसलिए मौलिकता कुछ नहीं है। जाहिर है मेरी मूर्ति भी मौलिक नहीं है। जब संसार ही मौलिक नहीं है। जब राजनीति ही मौलिक नहीं है। जब चुनाव ही मौलिक नहीं रहा है, न ईवीएम मौलिक न कैंडिडेटब। जब ईट और पत्थर भी मौलिक नहीं रहा। उसमें पता नहीं क्या-क्या मिला हुआ है? तो फिर आपलोग मेरी मूर्ति में मौलिकता क्यों खोज रहे हैं।
हनुमान- आप सही फरमा रहे हैं प्रभु! हम भी मौलिक नहीं है। हम भी तो बंदरों के वंशज हैं। इसलिए प्रभु मैं भी मानता हूं मौलिकता की बहस बेकार है। कल कोई कह देगा हनुमान की पूंछ मौलिक नहीं।
लेकिन प्रभु! मुझे तो लगता है जिस तरह से आपकी प्राण प्रतिष्ठा हो रही है कहीं आप के प्राण पखेरू न उड़ जाए।
राम- मुझे भी लगता है हनुमान! मेरे प्राण तो नहीं निकलने हैं। रोज मेरी प्राण प्रतिष्ठा की खबरें इतनी आने लगी है, इतना काम हो रहा है। करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं। लोगों की भीड़ जमा होने लगी है। जिस दिन मेरी प्राण प्रतिष्ठा होगी मैं भी राम मंदिर पहुंच पाउंगा या नहीं, मुझे संदेह है। लगता है मुझे अगर अयोध्या पहुंचना है तो कम से कम 15 दिन पहले पहुंचना होगा। तभी मैं वहां देख पाऊंगा अपनी प्राण प्रतिष्ठा।
हनुमान- लेकिन प्रभु! अब आपकी वह प्रतिष्ठा भी नहीं रही, अब तो आप राजनीति की वस्तु हो गए हैं। साहब 2024 आपके ही कंधे पर बेड़ा पार लगाएंगे। मुझे तो हरिओम शरण का भजन याद आ रहा है- राम जी करेंगे बेड़ा पार —
राम- मैं क्या बेड़ा पार करवाउंगा। मैं तो इस ठंड में खुद ही परेशान हूं उम्र हो चली। इतनी ठंड पड़ रही है। मेरी आवाज भी जमने लगी है। मेरी आत्मा कांपने लगी है।
हनुमान- हां प्रभु !आप ठीक कह रहे हैं .मुझे भी बहुत ठंड लग रही है। कहीं से आपके लिए मैं एक हीटर का इंतजाम करता हूं।
राम- ऊऊऊऊऊऊ….!
(Disclaimer: प्रभु श्रीराम और हनुमानजी के बीच ये काल्पनिक संवाद है)