राजस्थान में अब से कुछ देर बाद वोट डाले जाएंगे। कांग्रेस को उम्मीद है कि गहलोत सरकार की विकास योजनाएं हर 5 साल में सरकार बदलने की परंपरा और सोच पर भारी पड़ेंगी। वहीं बीजेपी इसी रिवाज और परंपरा के भरोसे सत्ता में वापसी की उम्मीद लगाए बैठी है। दरअसल बीते एक महीने के चुनाव प्रचार के दौरान जहां कांग्रेस ने अपने विकास के एजेंडे को नहीं छोड़ा और हर चुनावी सभा में पार्टी की 7 गारंटी का बखान करती रही, वहीं बीजेपी बार बार अपना स्टैंड बदलती हुई नजर आई।
रही सही कसर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजसमंद की सभा में ये कहकर पूरी कर दी कि अगर बीजेपी सत्ता में आई तो गहलोत सरकार द्वारा शुरू की गई विकास की सभी अच्छी योजनाएं ना केवल जारी रहेंगी बल्कि बीजेपी उसे और बेहतर तरीके से लागू करेगी। यानी मोदीजी ने सार्वजनिक तौर पर ये मान लिया कि गहलोत साहब के कामकाज को लेकर जनता खुश है और उनकी आलोचना से जितने वोट मिलेंगे उससे दोगुने वोट कट जाएंगे।
दरअसल बीजेपी को ये फीडबैक मिला है कि राजस्थान की जनता हर 5 साल में सरकार बदलने के रिवाज को लेकर गंभीर तो है लेकिन वो कांग्रेस की 7 गारंटी और गहलोत सरकार के बेहतर कामकाज की चर्चा भी कर रही है। यहां के करीब सवा 5 करोड़ वोटर ये भी सोच रहे हैं कि बीजेपी सत्ता में आई तो कहीं गहलोत सरकार की विकास की योजनाएं बंद तो नहीं कर देगी। लिहाजा मोदीजी चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में गहलोत सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार, क्राइम, 15 परीक्षाओं में पेपर लीक, उदयपुर में एक दर्जी कन्हैयालाल की हत्या जैसे भावनात्मक मुद्दे उठाकर ही वोट मांगते नजर आए। जिससे राजस्थान के 5 फीसदी फ्लोटिंग वोटर यानी चुनाव से पहले अपना मन बनाने वाले वोटरों को आकर्षित किया जा सके।
कांग्रेस के घोषणा पत्र में गहोलत सरकार की चिरंजीवी स्वास्थ्य योजना की रकम को 25 लाख से बढ़ाकर 50 लाख किए जाने और 4 लाख नई सरकारी नौकरी देने की घोषणा के बाद बीजेपी चुनाव प्रचार में बड़बड़ाती हुई ही नजर आई है। वो भूल गई कि उसने भी राजस्थान की जनता को लुभाने के लिए कई आकर्षक घोषणाएं की हैं। गेहूं की एमएसपी, महिलाओं के लिए कल्याण योजनाएं, युवाओं को 2.5 लाख नई नौकरी, किसान सम्मान निधि में 6 की जगह 12 हजार रुपए देने के एलान को भूलकर बीजेपी व्यक्तिगत हमले और इतिहास को खंगालने बैठ गई। निश्चित तौर पर इसका ज्यादा लाभ बीजेपी को मिलता दिखाई नहीं दे रहा है।
जरा बीजेपी के चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में उठाए गए मुद्दों पर गौर कीजिए। मोदीजी ने राजस्थान के राजसमंद की सभा में सचिन पायलट को लेकर हमदर्दी जताते हुए बीजेपी के लिए वोट मांगते नजर आए। इससे ज्यादा हास्यास्पद और कुछ नहीं हो सकता था। मोदीजी ने कहा कि गुर्जर समाज से आने वाले कांग्रेस के सम्मानित नेता राजेश पायलट के बेटे सचिन पायलट के लिए अशोक गहलोत ने गद्दार, निकम्मा, नकारा जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया है। उसे पार्टी ने दूध में गिरी मक्खी की तरह निकाल फेंका है। इससे गुर्जर समाज का वोट बीजेपी को कैसे मिलेगा, समझ नहीं आया। दरअसल ये सब कहकर मोदीजी राजस्थान में बीजेपी की कमजोरी जता गए और चुनाव नतीजों के बाद के लिए सचिन पायलट पर डोरे डालते ही नजर आए।
हालांकि गुर्जर समाज के इस अपमान के आरोप पर गहलोत ने मोदीजी पर पलटवार करने में जरा भी देर नहीं लगाई। गहलोत ने याद दिलाया कि 2007 में जब गुर्जर समाज आरक्षण के लिए आंदोलन कर रहा था तब पुलिस फायरिंग में गुर्जर समाज के 50 से ज्यादा लोग मारे गए थे। उस वक्त राज्य में बीजेपी की सरकार थी। गहलोत ने कहा कि मेरे सत्ता में लौटने के बाद इस मामले का शांतिपूर्ण तरीके से निपटारा किया गया और गुर्जरों के लिए 5 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की गई। दरअसल राजस्थान में गुर्जरों की आबादी करीब 5 फीसदी है और सूबे की 34 सीटों पर उनका असर है। बीते चुनाव में कांग्रेस ने इन 34 सीटों में से 30 सीटें जीतीं थीं। पायलट के बहाने मोदीजी इसी वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश करते नजर आए।
अब बीजेपी के नेता भले ही बार बार इस बात को दोहरा रहे हों कि इसबार गहलोत का जादूगरी नहीं चलेगी। लेकिन अंदरखाने की खबर ये है कि मुख्यमंत्री का चेहरा ना बनाए जाने से वसुंधरा राजे पार्टी से खफा हैं। क्योंकि उन्हें मालूम है कि अगर बीजेपी को परंपरा के नाम पर पूर्ण बहुमत आ जाता है तो पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाने जा रही है। लिहाजा उनकी कोशिश होगी कि पार्टी बहुमत के आंकड़े से नीचे रहे, ताकि पार्टी नेतृत्व को थक-हारकर वसुंधरा की शरण में लौटना पड़े। वैसे राजस्थान की राजनीति पर पकड़ रखनेवाले लोगों का कहना है कि गहलोत कभी नहीं चाहेंगे कि हारने की सूरत में राजस्थान की कमान किसी और के हाथ में जाए। दबी जुबान से तो लोग यहां तक कह जाते हैं कि बीते दिनों जब गहलोत सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे थे तो वसुंधरा ने ही आगे बढ़कर उनकी सरकार बचाई थी।