छत्तीसगढ़ में पहले दौर के चुनाव में 74 फीसदी वोट डाले गए हैं। लेकिन ये कह पाना बेहद मुश्किल है कि बस्तर और दुर्ग संभाग की जिन 20 सीटों के लिए वोट डाले गए, उनके नतीजे क्या आएंगे? दरअसल बस्तर के मन में क्या है? ये जानना बेहद मुश्किल जान पड़ता है। बस्तर के वोटर ना केवल सरकार और विपक्ष की ताजा घोषणओं के बारे में जानते हैं बल्कि उनपर अपनी राय भी रखते हैं। उनके मन में शिकायतों का अंबार है तो वो किसानों के हित में अबतक लिए गए फैसले और उनके क्रियान्वयन की जमकर तारीफ भी करते हैं। लेकिन इससे आगे क्या? बस्तर और दुर्ग के वोटर ये सवाल करते भी नजर आते हैं। पहले दौर में ही राजनांदगांव से चुनाव लड़ने वाले पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के खिलाफ लोगों के मन में कोई राग-द्वेष नजर नहीं आता।
दिल्ली से छत्तीसगढ़ के पहले दौर के चुनाव कवरेज के लिए दुर्ग पहुंचते ही आपका सामना यहां की राजनीतिक रूप से जागरूक और परिपक्व मतदाताओं से होता है। मैंने फैसला किया कि इसबार चुनाव यात्रा गाड़ी से नहीं बल्कि सार्वजनिक परिवहन के साधन, मसलन, ऑटो और बस से करुंगा। इस ऑटो और बस की यात्रा में किस्म-किस्म के लोगों से बड़ी ही रोचक और दिलचस्प बातें हुई। लोगबाग भूपेश बघेल की सरकार से खुश नज़र आए तो नाराज भी कम नजर नहीं आए। यही हाल रमन सिंह के बारे में भी रहा। लोगों का कहना था कि 15 साल तक एक ही सरकार से उबकर बदलाव लाया गया था। तो फिर भूपेश बघेल सरकार के तो अभी पांच साल ही हुए हैं? इस सवाल का सीधा जवाब कोई नहीं देता।
तो चलिए बात शुरू करते हैं दुर्ग से। जहां की महिलाएं शराब को लेकर शिकायत करती नजर आईं। उनका कहना था कि कांग्रेस शराबबंदी का वादा कर सरकार में आई थी। थोड़े दिनों तक इसपर अमल भी हुआ लेकिन अब हर तरफ शराब ही शराब है। इस क्षेत्र के लोग सुबह से ही शराब पीकर टुन्न हो जाते हैैं। इसका सबसे ज्यादा खामियाजा यहां की मेहनतकश और गरीब औरतों को उठाना पड़ता है। जो मेहनत मशक्कत कर किसी तरह चार पैसे कमातीं हैं, जिनसे उनका घर चलता है। दुर्ग में तो हर जगह भाईचारे की अदभुत मिसाल नजर आई। जिसे देखकर कहा जा सकता है कि इस देश में सांप्रदायिक सद्भाव को खत्म करना किसी के बूते में नहीं है।
दुर्ग से कांकेर की सीधी बस नहीं मिली तो धमतरी जा पहुंचा। ताकि वहीं से किसी तरह कांकेर पहुंचा जा सके। खैर, कांकेर की बस मिली और 6 नवंबर की रात मैं कांकेर पहुंच गया। बस में खड़े-खड़े करीब एक घंटे के सफर में मैंने लोगों का मन टटोलने की बहुत कोशिश की, लेकिन नाकाम रहा। एक बात जो मुझे बहुत अच्छी लगी कि यहां कि महिलाएं आपसे बेलाग बोलती हैं। साफ कह देती हैं कि वोट किसको दूंगी। आपको क्यों बता दूं। आप इसपर खुश भी हो सकते हैं और नाराज भी हो सकते हैं। कांकेर में सुबह सात बजे से ही मतदान केंद्रों पर लोगों की लंबी-लंबी कतारें नजर आने लगीं। दरअसल नक्सलियों के प्रभाव वाले बस्तर में वोटिंग का टाइम सुबह 7 बजे से 3 बजे तक ही तय किया गया था। ताकि शांतिपूर्ण तरीके से मतदान को अंजाम दिया जा सके। कई बूथों पर भ्रमण के बाद कांकेर में कांग्रेस और बीजेपी के बीच कड़ी टक्कर की बात ही सामने आई।
इस क्षेत्र के लोगों का कहना था कि भूपेश बघेल सरकार ने किसानों से किया अपना वादा निभाया है। धान की खरीद एमएसपी पर हो रही है। साथ में सरकार किसानों को बोनस भी दे रही है। वादे के मुताबिक उनका कर्जा भी माफ किया गया है। कांग्रेस की धान की खरीद मूल्य बीजेपी के 3100 के मुकाबले 3200 रुपए प्रति क्विंटल किए जाने और फिर से किसानों का कर्जा माफ किए जाने की घोषणा का बड़ा फायदा कांग्रेस को मिलता दिखाई दे रहा है। लेकिन मोदीजी की 20 गारंटी की बात करने पर लोग फट से 15-15 लाख मिलने की याद दिलाने लगते हैं। दूसरी बात जो कांग्रेस के पक्ष में जाती नजर आई वो ये कि कोरोना के कारण बघेल सरकार को पूरे 5 साल काम करने का मौका ही नहीं मिला। 2 साल तो कोरोना में ही निकल गए। इसलिए अगर रमन सिंह को 15 साल दिए तो बघेल के लिए एक टर्म और तो बनता है।
कांकेर से केशकाल विधानसभा क्षेत्र तक की बस यात्रा थोड़ी तकलीफदेह रही। क्योंकि घाटी का रास्ता बेहद खराब है। ऐसा लगता रहा कि मानो बस अब पलटी की तब पलटी। लोगों ने कहा कि इस रास्ते में एक भी गाड़ी खराब हो गई तो लंबा जाम लग जाता है। बस के सफर के दौरान आंगनबाड़ी में काम करने वाली सरोज मइना ने बताया कि यहां सहायिका को 5 हजार और कार्यकर्ता को 10 हजार मिलता है। वो भी हमने सरकार से लड़कर हासिल किया है। इसे बढ़ाकर 25 हजार किए जाने का जरूरत है। हालांकि उन्होंने ये भी बताया कि यहां के आंगनबाड़ी केंद्रों के लिए राज्य सरकार ने नाश्ता और खाना दोनों का बेहतर इंतजाम किया है।
केशकाल के बूथों पर सुरक्षा के तगड़े इंतजाम किए गए थे। यहां महिलाए बड़ी तादाद में वोट डालती नजर आईं। यहां के वोटरों ने बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ रहे पूर्व कलेक्टर नीलकंठ टेकाम के बारे में अच्छी राय वयक्त की। लेकिन जोर उनके खिलाफ लड़ रहे संतराम नेताम का भी नजर आया। बघेल सरकार पर महादेव
सट्टेबाजी ऐप के प्रमोटर्स से 508 करोड़ उगाही के आरोप पर यहां के लोगों का कहना था कि मोदीजी की सरकार महादेव ऐप के बहाने बघेल सरकार को फंसाने की कोशिश कर रही है। अगर घोटाला दुबई से हो रहा था तो भारत के गृहमंत्री अमित शाह क्या कर रहे थे? उन्होंने इस घोटाले को होने देने से रोका क्यों नहीं। बीजेपी का ये वार बस्तर के इलाके में बेअसर ही नजर आया।
केशकाल से कोण्डागांव की बस यात्रा बेहद दिलचस्प रही। एक सरदारजी बस ड्राइवर थे, जो केजरीवाल के भक्त निकल आए। उन्होंने केजरीवाल साहब की ऐसी-ऐसी खूबियां गिनाईं, जिससे बारे में शायद केजरीवाल को भी पता ना हो। जब उन्हें पता चला कि मैं दिल्ली से ही आया हूं, तो वो थोड़े ठंडे पड़ गए। उन्होंने नाराजगी जताते हुए कहा कि केजरीवाल ने यहां शुरू में तो जोर लगाया लेकिन बाद में नाड़ा ढीला छोड़ दिया। इसीलिए छत्तीसगढ़ के चुनाव में उनकी छवि वोटकटुआ की हो गई है। चुनाव में आम आदमी पार्टी को आधा फीसदी वोट भी नहीं आने जा रहा है।
कोण्डागांव में भी नक्सलियों के चुनाव बहिष्कार की घोषणा को देखते हुए सुरक्षाकर्मी हर जगह मुस्तैद नजर आए। यहां कांग्रेस और बीजेपी के वोटरों की बात तो छोड़ दीजिए, कार्यकर्ताओं में भी काफी एका नजर आया। चुनाव खत्म होने के बाद दोनों दलों के लोग साथ-साथ खाना खाते नजर आए। यहां से बीजेपी की उम्मीदवार और पूर्व मंत्री लता उसेंडी और कांग्रेस के कद्दावर नेता मोहन मरकाम के बीच कड़ा मुकाबला नजर आया। बीते चुनाव में भी यहां फैसला 2 हजार से कम वोटों से ही हुआ था। यहां अरिहंत मेडिकल नाम से दवा दुकान चलाने वाले वीरेंद्र जैन ने दावा किया कि सूबे में अबकी रमन सिंह की सरकार बनने जा रही है। पहले दौर के चुनाव में क्या होगा? इस सवाल पर अपनी भविष्यवाणी करते हुए उन्होंने कहा कि आप देख लीजिएगा बस्तर की 12 सीटों में 8 सीटें बीजेपी के खाते में जाएंगी।
पहले दौर के चुनाव के बाद रमन सिंह ने राजनांदगांव में रिकॉर्ड मतों से जीतने का दावा किया है। उन्होंने कहा कि पहले दौर के चुनाव 20 में से वो 15 से 18 सीट जीतने जा रहे हैं। उन्होंने बघेल सरकार पर राजनांदगांव और कवर्धा में भारी मात्रा में नोट बांटने का आरोप भी लगाया। वहीं भूपेश बघेल ने इसबार छत्तीसगढ़ में 90 में से 75 सीट जीतने का दावा करते हुए रमन सिंह के दावे पर जमकर तंज किया। भूपेश बघेल ने कहा कि “रमन सिंह को फेंकना ही है तो थोड़ा ज्यादा फेंक लेते। सच्चाई तो ये है कि अबकी उनकी खुद की सीट नहीं बच रही है।” भूपेश बघेल ने बस्तर-दुर्ग संभाग में पिछले बार के 17 सीट के मुकाबले ज्यादा सीट जीतने का भरोसा जताया। अब इन दावों के बीच चुनाव का नतीजा जो भी होगा, बेहद दिलचस्प होगा। वैसे छत्तीगढ़ में आम धारणा यही है कि मुकाबला कांटे का है और खींच-तीरकर बघेल की सरकार एक बार फिर से बन सकती है।
(रिसर्च इनपुट: रिज़वान रहमान)