उत्तर प्रदेश में पांचवें दौर का चुनाव निर्णायक होने जा रहा है। इस दौर में बीजेपी जहां वोटों के बिखराव के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है, वहीं समाजवादी पार्टी की कोशिश है कि वोटों के बिखराव को किसी तरह से रोका जाए। कांग्रेस के साथ समाजवादी पार्टी मोटे तौर पर दोस्ताना संघर्ष करती ही नजर आ रही है। लेकिन अखिलेश यादव की असली चिंता बीएसपी का वोट बैंक है। जो बीजेपी को जीताने और हराने के लिए जिम्मेदार है। दरअसल बहन मायावती ही वोटों के बिखराव और बीजेपी की जीत में अपनी अहम भूमिका निभा सकती हैं।
अगर 2012 और 2017 के चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो बीजेपी ने समाजवादी पार्टी के हाथ से सत्ता छीनी तो इसके लिए वोटों के बिखराव को ही जिम्मेदार ठहराया गया था। अगर हम पांचवें दौर की ही बात करें तो बीजेपी को 2017 में 61 में से 47 सीटें मिलीं थीं। जबकि उसे 2012 में इन्हीं 61 सीटों में से महज 5 सीटें ही मिलीं थीं। बीजेपी की इस कामयाबी के लिए मायावती को बहुत बड़ा फैक्टर माना गया। हालांकि खुद मायावती इन 61 सीटों में से महज 3 सीटें ही जीत पाईं थीं लेकिन उसके 14 उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे थे। जो समाजवादी पार्टी की ताबूत में आखिरी कील साबित हुए थे।
इस चुनाव में माना जा रहा है कि बीएसपी और बीजेपी के बीच एक तरह से अघोषित गठबंधन है। यही वजह कि मायावती अपनी चुनावी सभाओं में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी पर सबसे ज्यादा हमले बोल रहीं हैं। वो बीजेपी को लेकर सॉफ्ट ही नजर आती हैं। रही सही कसर अमित शाह ने मायावती और बहुजन समाज पार्टी की खुलेआम तारीफ कर पूरी कर दी है।
अमित शाह का कहना है कि मायावती राजनीति में अभी अप्रासंगिक नहीं हुईं हैं और उनका वोट बैंक भी अपनी जगह कायम है। वो यहीं नहीं रुकते। अमित शाह ये भी कहते हैं कि मायावती को न केवल उनके दलित वोटरों बल्कि बड़ी संख्या में मुसलमान भी वोट देंगे। मतलब साफ है कि अगर ऐसा होता है तो बीजेपी को जीत की गारंटी होगी। लेकिन अगर मायवती अपने वोटरों को संभालने में नाकाम रहीं तो पासा अखिलेश यादव के पक्ष में पलट सकता है। जैसे 2012 के मुकाबले 2017 में बाजी बीजेपी के पक्ष में पलटी थी और बीजेपी 5 सीट से 47 सीट पर पहुंच गई थी।
अगर हम 5 वें दौर की 61 सीटों पर 2012 और 2017 के चुनावी नतीजों पर गौर करें तो बीजेपी जहां 5 से 47 सीटों पर पहुंच गई थी, वहीं समाजवादी पार्टी 41 सीट से घटकर 5 सीट पर आ गई थी। लेकिन सपा के लिए संतोष की बात ये रही कि 2017 में वो 27 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी। इसी तरह कांग्रेस पार्टी को भी 2012 के 6 सीटों के मुकाबले 2017 में महज 1 सीट ही मिली और उसे 5 सीटों का नुकसान हुआ था। लेकिन वो 11 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी। बीएसपी को 2012 के 7 सीटों के मुकाबले 2017 में 3 सीट ही मिली लेकिन वो 14 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी।
वोटों का यही बिखराव बीजेपी के लिए सत्ता की सौगात लेकर आया था। और ऐसा मान जा रहा है कि 2022 के चुनाव में अगर वोटों का ये बिखराव नहीं हुआ तो बाजी अखिलेश यादव के पक्ष में बीजेपी की तरह ही पलट सकती है। मायावती भले ही इस बार चुनाव में बहुत कम सक्रिय नजर आईं हों लेकिन उत्तर प्रदेश की सत्ता की चाबी अब भी उनके ही हाथ में नजर आ रही है।