बिहार में दूसरे दौर की वोटिंग में महासंग्राम
मोदीजी का दावा है कि वो बचपन में गुजरात के वडनगर रेलवे स्टेशन पर चाय बेचते थे। यही वजह है कि उन्हें रेल के इंजन से कुछ ज्यादा ही प्यार है। तभी वो चुनाव में भी चाय के साथ इंजन ले आते हैं। बिहार के चुनावी सभाओं में वो बार बार कहते हैं, ‘विकास चाहिए तो डबल इंजन की सरकार बनाइए।‘ यानी केंद्र की तरह बिहार में भी एनडीए की सरकार बनाइए। वो लालू यादव के 15 साल पहले के शासन की याद दिलाने की भरसक कोशिश करते हैं। लालू-राबड़ी यादव राज में रंगदारी और किडनैपिंग के किस्से-कहानियां सुनाते हैं। लेकिन भविष्य के सपने देख रही बिहार की जनता और जागरूक युवा अब 15 साल पीछे लौटने को तैयार नहीं दिख रहे हैं।
बिहार के युवा आज मोदीजी से नौकरी के बारे में, शिक्षा के बारे में, रोजगार के बारे में, कल करखानों के बारे में सुनना चाहते हैं। लेकिन मोदीजी की झोली में बिहारियों के लिए लालू परिवार की लूट का भय दिखाने के सिवाय ज्यादा कुछ नहीं है। तभी लालू यादव ट्वीट के जरिए मोदीजी पर कटाक्ष करते हैं कि इसबार बिहार में डबल नहीं ट्रिपल इंजन की ठोस सरकार बनने जा रही है। वहीं उनकी विरसत संभालने का दावा करने वाले तेजस्वी यादव मोदीजी के भय को खारिज करते हुए कहते हैं, ‘लालटेन अंधेरा नहीं रोशनी फैलाने का काम करता है।‘
बिहार में 3 नवंबर को दूसरे चरण में 17 जिले की 94 सीटों के लिए वोट पडेंगे। इन सीटों पर एनडीए और महागठबंधन के बीच कांटे का मुकाबला है। एनडीए की ओर से बीजेपी 46, जेडीयू 43 और वीआईपी पार्टी के 5 उम्मीदवार मौदान में हैं। महागठबंधन की ओर से 94 में से 56 सीटों पर आरजेडी के उम्मीदवार खड़े हैं। कांग्रेस 24, सीपीआई और सीपीएम 4-4 सीटों पर और सीपीआई (एमएल) के 6 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। बिहार में दूसरे दौर की वोटिंग में करीब एक तिहाई यानी 2.85 करोड़ वोटर वोट डालेंगे। जिनमें 1.35 करोड़ महिला वोटर भी हैं। इन सीटों पर 1464 उम्मीदवार ताल ठोंक रहे हैं जिनमें 146 महिला उम्मीदवार भी हैं।
नीतीश कुमार को इन महिला वोटरों से काफी उम्मीदें है जिन्होंने एक समय शराबबंदी के लिए सुशासन बाबू को सिर आंखों पर बिठा रखा था। लेकिन आज यहीं शराबबंदी नीतीश कुमार के गले की हड्डी बन गया है। आज बिहार के हर चौक-चौराहे पर आपको शराब बेचने वाले युवा मिल जाएंगे जो एक फोन पर शराब की होम डिलीवरी कर देंगे। अंग्रेजी और देशी दोनों दारू जितनी चाहें उतनी उपलब्ध है। जो महिलाएं कभी शराबबंदी की तारीफ करते नहीं थकती थीं आज वहीं महिलाएं इसे कोसती रहती हैं। उनका कहना है कि पहले जहां मर्द 100-200 रुपये शराब पर खर्च करते थे वहीं अब शराब पर खर्च 400-500 रुपए हो गया है।
दरअसल, शराबबंदी ने यहां के युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा किए हैं। इसने भ्रष्टाचार को इतना बढ़ा दिया है कि महागठबंधन की बात तो छोड़ दीजिए एनडीए के घटक दल ‘हम’ के अध्यक्ष जीतन राम मांझी और मोदी जी के हनुमान एलजेपी के अध्यक्ष चिराग पासवान ने भी इसे चुनावी मुद्दा बना रखा है। जीतनराम मांझी कहते हैं कि हालत इतनी खराब है कि हजारों गरीब दो-चार घुंट पीने के आरोप में महीनों से जेल में बंद है। उनका बेल कराने वाला कोई नहीं है, वहीं अमीर लोग पीकर मटरगश्ती करते रहते हैं। उन्हें कोई कुछ नहीं बोलता। रोज बिहार में पड़ोसी राज्यों से ट्रक के ट्रक शराब लाई जाती है और बेची जाती है। सरकार बनने की सूरत में वो इन शराब माफियाओं पर लगाम लगाने और शराबबंदी को लागू करने में आमूलचूल परिवर्तन की बात करते हैं।
वहीं मोदीजी को अपना आदर्श माननेवाले चिराग पासवान तो शराबबंदी के मामले में नीम पर चढ़ा करैला साबित हो रहे हैं। कहते हैं, ‘नीतीश की अगुवाई में ही प्रदेश में शराब की होम डिलीवरी हो रही है और इसके कमीशन का बड़ा हिस्सा सुशासन बाबू के निजी खजाने में पहुंच रहा है।‘ जुमलेबाज और भ्रष्टाचारी नीतीश के राज में बाहर से लाई जाने वाली शराब की वजह से हजारों करोड़ रुपए के राजस्व की हानि हो रही है। चिराग पासवान यहीं नहीं रुकते, वो आरोप लगाते हैं कि प्रदेश की 7 निश्चय योजनाओं में 30 हजार करोड़ रुपए का घोटाला हुआ है। अगर बिहार की जनता उन्हें ताकत देती है तो वो इन घोटालों की जांच करवाएंगे और सुशासन बाबू को जेल की हवा खिलाएंगे। कभी एनडीए के साथी रहे उपेंद्र कुशवाहा भी कहते हैं, ‘विकास के नाम पर बिहार में लूट हुई है। नीतीश ने पैसे केवल लूट के इरादे से ही खर्च किए हैं।‘
गांव-गांव घर-घर तक साफ पानी पहुंचाने के लिए नीतीश कुमार के राज में शुरू हुई महत्वाकांक्षी नल जल योजना का भी पूरे बिहार में बुरा हाल है। पाइपों की खरीदारी में भारी घोटाला हुआ है और काम अधूरा है। बिहार के गांवों में 90 फीसदी जगहों पर पेयजल की पतली सी पाइप को टांग कर छोड़ दिया गया है। ना तो इनमें नल लगा है और न ही बीते 6 महीने से किसी को मालूम है कि इस पाइप में पानी कब और कहां से आएगा? गांववालों का कहना है, ‘अगर कहीं पानी आ भी रहा है तो वो पेशाब के माफिक आता है जिसे पीने का मतलब है बीमारी को दावत देना।‘ चिराग पासवान ने इसे भी अपना चुनावी मुद्दा बना रखा है, वहीं जीतन राम मांझी भी कबूल करते हैं, ‘जल नल योजना में भारी गड़बड़ी हुई है।‘ इधर नल जल योजना से जुड़े कई ठेकेदारों के यहां इनकम टैक्स की छापेमारी में 3 करोड़ रुपए से ज्यादा की नकदी बरामद होने से नीतीश की मुश्किलों और बढ़ गई है।
बिहार में दूसरे और तीसरे दौर के मतदान से पहले भ्रष्टाचार और महंगाई भी बड़ा मुद्दा बन गया है। कोरोना के बाद जो फ्री राशन का वादा किया गया, वो या तो लोगों को मिला नहीं और अगर मिला भी तो स्थानीय स्तर पर उनमें कटौती कर दी गई। केंद्र की उज्जवला और शौचालय योजना में भारी फर्जीवाड़ा हुआ है। शौचालय के लिए 12 हजार मिलते हैं मगर उसे पाने के लिए 2 से 3 हजार रुपए घूस देने पड़ते हैं। फ्री रसोई गैस भी सबको नहीं मिल पाया है। प्रधानमंत्री आवास योजना में जो घर मिलता है उसमें भी 20 से 30 हजार रिश्वत देना होता है। गांव के लोग खुलेआम कहते हैं, ‘नीतीश राज में हर काम के लिए रिश्वत फिक्स है। विकास के नाम पर वो दारू और बालू बिकवा रहे हैं और अपनी तिजोरी भर रहे हैं।‘
कोरोना और पलायन के दर्द के बाद बिहार के लोग अब कमरतोड़ महंगाई से त्राहिमाम् कर रहे हैं। महंगे आलू- प्याज से त्रस्त वो कहते हैं, ‘लालू यादव ने 2 रुपए किलो आलू खिलाया था मगर नीतीश राज में 50 रुपए किलो आलू है। प्याज 80 रुपए किलो हैं।‘ गांव के लोगों का मानना है कि मोदीजी की सरकार अमीरों की सरकार है, जबकि लालू यादव गरीबों का ख्याल रखते थे।
यही वजह है कि बिहार के चुनाव में मोदीजी का दिमाग चकरघिन्नी हो गया है। वो बिहार मे भाषण देते हुए नरभसाए से दिखते हैं। वो कभी विकास की बात करते हैं तो कभी राम मंदिर की। और तुरंत उछलकर कश्मीर और लद्दाख पहुंच जाते हैं। फिर लगता है कुछ कमी रह गई तो पुलवामा और पाकिस्तान पहुंच जाते हैं। ऐसे में दूसरे और तीसरे दौर की वोटिंग में ये देखना दिलचस्प होगा कि बिहार की जनता विकास की मांग पर टिकी रहती है या फिर टीवी न्यूज चैनलों के बहकावे में आकर मंदिर में नमाज और लव जिहाद जैसे भावनात्म मुद्दों में फंस जाती है।