सुप्रीम कोर्ट जहां इलेक्टोरल बॉन्ड यानी राजनीतिक दलों को चुनावी चंदे की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है, वहीं पांच राज्यों में इसी महीने होने वाले विधानसभा चुनावों के बीच ही मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड की 29वीं किश्त की बिक्री को मंजूरी दे दी है। इस सिलसिले में वित्त मंत्रालय का एक बयान आया है, जिसके मुताबिक सरकार ने भारतीय स्टेट बैंक को 29 ब्रांच के जरिए 6 से 20 नवंबर तक चुनावी बॉन्ड जारी करने और भुनाने के लिए अधिकृत किया है।
इससे पहले इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम ने मोदी सरकार से कई तीखे सवाल पूछे हैं। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने चुनावी चंदे पर गंभीर सवाल उठाते हुए सरकार से पूछा कि ऐसा क्यों होता है कि जो पार्टी सत्ता में होती है उसे सबसे ज्यादा चुनावी चंदा मिलता है? आरोप है कि चुनावी चंदे का 60 फीसदी से ज्यादा हिस्सा बीजेपी के खाते में गया है। जबकि कांग्रेस पार्टी को इस चुनावी चंदे का 10 फीसदी हिस्सा ही हाथ लगा है। जाहिर है चुनावी चंदे की इस परंपरा में कई खामियां दिखाई देने लगीं हैं।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड की संवैधानिक वैधता को लेकर चली लंबी सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को गुमनाम तरीके से चंदा देने की इस प्रथा में कई खामियां बताईं हैं। क्योंकि इसमें सत्ताधारी दल के पास तो चंदा देने वालों की सारी जानकारी होती है लेकिन विपक्ष या आम लोगों को इस बारे में कोई जानकारी नहीं हो पाती। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान माना कि इलेक्टोरल बॉन्ड लोगों को सूचना पहुंचाने में रुकावट पैदा कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने इलेक्टोरल बांड की जरूरत पर सवाल उठाते हुए चुनाव आयोग से सभी दलों को मिले चुनावी चंदे का ब्यौरा भी मांगा है।
एक आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक मार्च 2018 से अक्तूबर 2023 तक करीब 15 हजार करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे गए हैं। जिनमें अधिकांश बांड 1 करोड़ रुपये मूल्य के हैं। ये सूचना पारदर्शिता कार्यकर्ता कमोडोर लोकेश बत्रा (सेवानिवृत्त) ने सूचना के अधिकार आवेदन से एकत्रित किया है। जिनमें अबतक 14,940 करोड़ रुपये के बांड बेचे जाने की बात सामने आई है।
गौरतलब है कि चुनावी चंदे की पहली किश्त 1 मार्च, 2018 को उपलब्ध कराई गई थी, और तब से बॉन्ड को भारतीय स्टेट बैंक द्वारा 28 चरणों में बेचा गया है। पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से ठीक पहले 4 से 13 अक्टूबर 2023 के बीच भी 1148 करोड़ रुपए के चुनावी बॉन्ड बेचे गए हैं। जिनमें 95 फीसदी इलेक्टोरल बॉन्ड एक करोड़ रुपए मूल्यवर्ग के हैं। ये बॉन्ड हैदराबाद में ही बेचे और भुनाए गए हैं। चुनावी बॉन्ड योजना को लेकर सवाल उठाने वाले लोगों का कहना है कि इस योजना के तहत खरीदे जाने वा अधिकांश बॉन्ड 1 करोड़ रुपये के मूल्यवर्ग के ही क्यों होते हैं? उनता मानना है कि ये बॉन्ड ज्यादातर व्यावसायिक संस्थाओं द्वारा खरीदे जा रहे हैं। यानी चुनावी चंदे की इस रकम का इस्तेमाल सरकार की नीतियों को प्रभावित करने में हो सकता है।